ग्रेटर नोएडा। महाभारत में भगवान कृष्ण को सारथी बनाकर अर्जुन ने कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। चुनाव में विरोधियों पर जीत दर्ज करने के लिए साम, दाम, दंड व भेद के साथ ही कुशल सारथी या प्रबंधक का होना बेहद जरूरी है। इसी पर अमल करते हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1981 में मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा का चुनाव जीता था। उनके सारथी व प्रबंधक थे वर्तमान में ग्रेटर नोएडा निवासी राजेंद्र सिंह। किसानी से जुड़े राजेंद्र सिंह परिवार के साथ 2002 से अल्फा एक सेक्टर में रह रहे हैं।
राजा मांडा के नाम से विख्यात वीपी सिंह प्रयागराज के मांडा के ही रहने वाले थे। मांडा के पास गांव नरवर के रहने वाले राजेंद्र उनके बचपन के दोस्त थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह नौ जून 1980 से 19 जुलाई 1982 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें 21 नवंबर 1980 को विधान परिषद सदस्य बने थे। हालांकि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 1981 में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया।
चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने बांदा जिले की तिंदवारी सीट को चुना। यह सीट ठाकुर बाहुल थी। 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट से एसपी सिंह विधायक बने थे। वीपी सिंह के लिए उन्होंने अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया था। इस सीट पर हुए उपचुनाव में वीपी सिंह के सामने प्रभु दत्त ने ताल ठोकी थी। चुनाव का मुकाबला काफी दिलचस्प था। विरोधी पार्टियां एक जुट होकर मुख्यमंत्री को हराने में जुटी थीं।
वीपी सिंह ने अपने सबसे विश्वासपात्र मित्र राजेंद्र सिंह को चुनाव प्रबंधक की अहम जिम्मेदारी सौंपी। वीपी सिंह का विधानसभा क्षेत्र मांडा से लगभग 200 किलोमीटर दूर था। उनके कहने पर राजेंद्र बुलेट से तिंदवारी पहुंच गए और पूरे चुनाव के दौरान वहां रहे। राजेंद्र बताते हैं कि वीपी सिंह ने कुछ करीबी लोगों के साथ बैठकर चुनाव की रणनीति तैयार की और निर्णय लिया कि पूरे चुनाव में दो पहिया वाहन से ही प्रचार किया जाएगा। मुख्यमंत्री पद की अहम जिम्मेदारी होने के कारण वीपी सिंह नियमित रूप से चुनाव क्षेत्र में नहीं ठहर पाते थे। उनकी गैर मौजूदगी में राजेंद्र सिंह ने चुनाव का कुशलता से प्रबंधन किया।
राजेंद्र बताते हैं कि चुनाव में प्रचार के लिए वीपी सिंह जब भी आए, उनकी बुलेट से ही क्षेत्र में प्रचार के लिए गए। उनके साथ चलने वाले समर्थक भी दो पहिया वाहनों पर होते थे। राजेंद्र बुलेट चलाते थे और वीपी सिंह पीछे बैठते थे। बुलेट से प्रचार की उनकी अदा सभी को बहुत पसंद आई। उनके पहुंचने से पहले ही गांव में लोग स्वागत में पलक बिछाए खड़े मिलते थे। लोगों के प्यार की बदौलत वीपी सिंह ने जीत दर्ज की। इसके बाद हुए अन्य चुनावों में भी राजेंद्र, वीपी सिंह की जोड़ी बनी रही। खास बात रही कि राजेंद्र सिंह ने कभी पार्टी की सदस्यता नहीं ली। वीपी सिंह की मौत से उन्हें गहरा झटका लगा। फिर वह अन्य किसी के साथ चुनाव में नहीं जुड़े।