नोएडा। अगर सब ठीक ठाक रहा तो आने वाले दिनों में नोएडा के बॉटनिकल गार्डन में आपको विक्टोरिया प्लांट देखने को मिलेगा। अभी इस प्लांट को लगाने की योजना पर काम किया जा रहा है। तीन मीटर से अधिक व्यास की पत्ती वाला यह पौधा जहां एक नजर में अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, वहीं इसकी पत्ती के वृहद होने का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि इस पर 30-30 किलो के चार बच्चे एक साथ बैठ सकते हैं। इसके पत्ते की गोलाई साढ़े तीन मीटर होती है। वैज्ञानिकों ने इसे गार्डन के अजूबा श्रेणी में रखा है।
विक्टोरिया एमाजोनिका नाम के इस पौधे के बीजों का मखाने की तरह खाने में उपयोग किया जाता है। इसमें प्रोटीन के साथ आयरन, जिंक, मिनरल काफी मात्रा में पाया जाता है। देश में अभी तक यह कोलकाता के बॉटेनिकल गार्डन में संरक्षित है।
पहली बार अमेजन नदी में देखा गया यह पौधा
इस पौधे को 1801 में ब्राजील की अमेजन नदी में पहली बार देखा गया। अमेजन नदी जैव विविधता में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। पानी में उगने वाले इस पौधे को मखाने का चचेरा भाई भी कहा जाता है। अप्रैल व मई के महीने में इसके बीज को उगने के लिए डाला जाता है। गर्मी खत्म होने के साथ बीज अंकुरित होने लगते है। इसका फूल खिलने का भी अंदाज बिलकुल अलग है। सर्दी के महीने में पहली रात में इसका फूल सफेद रंग का होता है। दूसरी रात में यह गुलाबी हो जाता है। तीसरी रात में यह पानी में वापस समा जाता है और यहीं पर उसका फल तैयार होता है। एक पौधे से पांच सौ से अधिक बीज तैयार होते हैं। ये बीज पानी में ही गिर जाते हैं और यहीं से उन्हें गोताखोरों के द्वारा निकाला जाता है।
1851 में इस पर पहली बार खिला था फूल
बॉटनिकल गार्डन के वैज्ञानिक डा. शिवकुमार बताते हैं कि यह एक विशेष प्रकार का पौधा है। इसकी पत्ती की अपनी विशेषता है। यह जहां आकार में बड़ी होती है वहीं इस पत्ती की डंडी भी साढ़े सात मीटर होती है। 1851 में पहली बार इस पर फूल खिला था। जिसे इंग्लैड की महारानी विक्योरिया को भेंट किया गया था। तभी से इसका नाम विक्टोरिया एमाजोनिका पड़ा। करीब सौ वर्ष पहले इसे भारत में कोलकाता के बॉटेनिकल गार्डन में लाया गया था। इसकी पत्ती का व्यास अधिक होने के कारण इसकी खेती नहीं की जाती है, क्योंकि यह पानी में जगह अधिक घेरती है। इसके बीज को मखाने की तरह ही खाया जाता है।