Home Breaking News जानिये परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की जांबाज़ी की जाबाज़ कहानी की कैसे वो मशीनगन छीन दुश्मन पर टूट पड़े थे
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जानिये परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की जांबाज़ी की जाबाज़ कहानी की कैसे वो मशीनगन छीन दुश्मन पर टूट पड़े थे

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कश्मीर सीमा पर कारगिल क्षेत्र में मसको घाटी में पाकिस्तान के कब्जे से दो चौकियां खाली करवाने का हमारा निर्णायक ऑपरेशन शुरू होने से पहले 13 जैक राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा ने द्रास सेक्टर में प्वाइंट 5140 को जीत लिया था। यह हिंदुस्तान की विजय का एक बड़ा पड़ाव था। 14 जून से 20 जून 1999 के बीच में हुए इस ऑपरेशन में कैप्टन बत्रा के ‘दिल मांगे मोर’ के नारे ने युद्धभूमि में हमारे जैसे हजारों सैनिकों का जोश कई गुना बढ़ा दिया था। पॉइंट 4875 और फ्लैट टॉप, इन दोनों चौकियों को शत्रु से मुक्त कराने का 17 जाट रेजीमेंट का एक प्रयास असफल रहा था, अब भारतीय सेना के सामने बड़ी चुनौती थी। तब जैक राइफल को इन दोनों चौकियों को जीतने का दायित्व सौंपा गया…।

13 जैक राइफल्स के राइफलमैन और कारगिल युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता सूबेदार संजय कुमार ने संस्मरण साझा करते हुए आगे कहा, मेजर गुरप्रीत सिंह को कमांडर नियुक्त किया गया। निर्णय हुआ कि दाईं और बाईं दोनों ही ओर से आगे बढ़ेंगे। इसके लिए सी कंपनी का गठन किया गया, जिसमें 70 से 80 जवान रखे गए। जबकि 11 लोगों की लीडिंग टीम सूबेदार रमेश कुमार की अगुआई में बनाई गई।

हमारे पीछे कुछ दूरी पर बाईं ओर से 17 जाट और दाईं ओर से जैक राइफल्स के जवान भी पीछे आ रहे थे। इस बार हम छोटी-छोटी टुकड़ियों में बढ़ रहे थे, ताकि शत्रु के फायर से एक साथ क्षति न हो। हमारा लक्ष्य था कि दोनों चौकियों के नीचे स्थित पड़ाव साउथ सपर चोटी पर रात को 2:30 से 3:00 बजे के बीच पहुंच जाएंगे। हम अंधेरे में आगे बढ़ रहे थे। हमें पीछे से बोफोर्स तोप से कवर फायर दिया जा रहा था।

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लक्ष्य से ढाई घंटे का विलंब हो चुका था। लगभग 400 मीटर और ऊंचाई पर पहुंचना था। अब हम इस स्थिति में आ पहुंचे थे कि हमें शत्रु सीधा नहीं देख पा रहा था, किंतु हम उन्हें देख रहे थे। जाट रेजीमेंट की सैन्य टुकड़ी को शत्रु ऊपर से देख पा रहा था और उन पर फायर कर रहा था। इस दौरान क्रॉस फायरिंग चलती रही। हमें पहली चौकी यानी पॉइंट 4875 तक पहुंचने में लगभग 3 घंटे लग गए। अब भी इस चौकी से फायरिंग कर रहे पाकिस्तानी सैनिक हमें देखने की स्थिति में नहीं थे। मैं और मेरे साथ नीतेंद्र कुमार पॉइंट 4875 के पास तैनात किए गए। हम पाक बंकर के पास थे। सूबेदार रमेश कुमार वहां से कुछ दूरी पर तैनात थे। इस बंकर से पाकिस्तान के सैनिक यूनिवर्सल मशीनगन (यूएमजी) से फायर कर रहे थे।

अब हमारा लक्ष्य था कि किसी तरह से बंकर पर रखी गई पाकिस्तान की इन मशीनगनों को उड़ाना था। मैंने अपने साथी नीतेंद्र को शत्रु के बंकर पर हैंड ग्रेनेड फेंकने का संकेत दिया। जैसे ही उन्होंने हैंड ग्रेनेड फेंका, मैंने फायरिंग के बीच आगे बढ़कर बगैर दुश्मन को मौका दिए बंकर पर लगाई गई मशीनगनों को छीन लिया। मेरे पीछे नीतेंद्र और शेष साथियों ने बंकर के अंदर बैठे पाकिस्तानियों पर फायर कर उन्हें मार गिराया। मैंने पाकिस्तानी सैनिकों से छीनी गई मशीनगन से उन्हीं पर फायर किया। अब हमने इस चौकी पर अधिकार कर लिया था। अब हमें फ्लैट टॉप को अधिकार में लेना था। दिनभर ऑपरेशन चलता रहा। पिछली चौकी को अधिकार में लेते हुए हमारे पांच साथी आहत हो गए थे, उनका उपचार चल चल रहा था।

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अगले मोर्चे पर हम मात्र छह जवान बचे थे। हम फ्लैट टॉप की ओर बढ़ रहे थे, इस बीच शिमला के श्याम और हमीरपुर के प्रवीण कुमार शहीद हो गए। आखिर में हम चार लोग अग्रिम मोर्चे पर रह गए थे। मैं एक बड़े पत्थर की आड़ लेकर फायरिंग कर रहा था कि दो गोलियां पैर में आ लगीं। हमें भी पीछे से भी कवर फायर मिल रहा था। कुछ ही देर के बाद मैं और मेरे साथी फ्लैट टॉप पर पहुंच गए थे। हमने कुछ पाकिस्तानियों को मार गिराया, कुछ भागने में सफल हो गए। अब हमने इस चौकी पर भी अधिकार कर लिया था।

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