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डर को घर छोड़ यूपी और बिहार के कामगार फिर से लौटने लगे दिल्ली-मुंबई

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गोरखपुर। इसे नियति का खेल ही कहेंगे। वेतन और बकाया भूल घर लौटे प्रवासी आज उसी के लिए वापस हो रहे हैं। संकट की घड़ी में घर पहुंचकर कुछ दिनों के लिए खुश तो हो गए, लेकिन जब खाद और बीज खरीदने का समय आया, तो हाथ-पांर फूल गए। बच्‍चों की शादी, कपड़े और उनकी पढ़ाई के बोझ ने माथे पर बल ला दिया। किसी तरह खेती तो कर ली, लेकिन अब आगे का खर्च कैसे चलेगा। उत्तर प्रदेश और बिहार के कामगार काम के लिए बेचैन हैं। वहीं अनलॉक के बाद श्रमिकों के अभाव में महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, पंजाब, अहमदाबाद, हैदराबाद की कंपनियों के ताले नहीं खुल पा रहे हैं। कंपनियां अपने पुराने और अनुभवी कामगारों को फोन कर बुलाने लगी हैं। बकाया देने के वादे के साथ ऑनलाइन टिकट भी बुक करा रही हैं। कामगार भी अ²श्य शत्रु के डर को घर छोड़ वापस लौटने लगे हैं। कहते हैं, अपने वतन (जन्म धरती) का मोह करेंगे तो  रोजी-रोटी नहीं मिलेगी। बाल-बच्‍चे कहां जाएंगे।

बुलावा आया तो निकल पड़े घर से

बुधवार शाम 4.00 बजे के आसपास पीपीगंज निवासी युवा पंकज प्लेटफार्म नंबर दो पर गोरखधाम स्पेशल के सामने बैठा था। कभी टिकट को पलटकर देखता तो कभी बैग निहारता। पूछने पर बोला। दिल्ली जा रहा हूं। वहां से हैदराबाद का टिकट है। दो माह से बैठा हूं। खेती भी हो गई। लकड़ी का काम करता हूं। पैसे भी नहीं हैं कि कुछ व्यवसाय शुरू करूं। सोच ही रहा था कि कंपनी से फोन आ गया। टिकट भेजा है, बकाया देने का वादा भी किया है। कुशीनगर एक्सप्रेस पकडऩे के लिए थोड़ी दूर पर कुशीनगर का मुराली अपने बड़े भाई के परिवार के साथ बैठा था। उसका कहना था कि, घर पर बेरोजगार था। भैया भोपाल में रहते हैं। उन्होंने बुलाया है। टिकट भी भेजा है। उनके साथ ही कंपनी में काम करुंगा।

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मनरेगा में नहीं मिला काम

स्लीपर कोच के सामने ट्रेन चलने के इंतजार में चार मित्र प्लेटफार्म पर बैठे थे। वे कुछ बोलने से परहेज कर रहे थे। कुरेंदने पर इंद्रजीत तिवारी ने कहा, दिल्ली जा रहे हैं। हम सभी मोटर साइकिल रिपेयरिंग का कार्य करते हैं। गांव के आसपास क्यों नहीं व्यवसाय शुरू करते। बीच में बैठा अनिल बोला। लोग चलने नहीं देंगे। यहां काम का माहौल ही नहीं है। डरेंगे तो खाएंगे क्या। अब इसी महामारी में ही जीना है। बातचीत के दौरान कोच से उतरे छोटेलाल गला तर करने लगे। पूछने पर बोले, महामारी फैलने लगी तो दिल्ली स्थित गोल मार्केट में उनकी कंपनी भी बंद हो गई। 29 मार्च को किसी तरह गांव आया। तीन माह से घर पर हूं। कंपनी से फोन आ रहा है। टिकट भी मिला है। परिवार को छोड़कर जा रहा हूं। यहां कोई रोजगार नहीं है। इसी बीच कुशीनगर एक्सप्रेस पकडऩे संतकबीर नगर के सादिक अली भी पहुंच गए। बोले, कल्याण में मजदूरी करता हूं। वहां रोज 500 की कमाई हो जाती है। यहां कभी-कभार काम मिलता है। मनरेगा में भी कोई पूछने वाला नहीं है। जो पहले से हैं, प्रधान उन्हें ही काम देता है।

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