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दिलेरी दिखा तय किया देवेंद्र मिश्र ने कांस्टेबल से सीओ तक का सफर

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लखनऊ। कानपुर में हिस्ट्रीशीटर बदमाश विकास दुबे को उसके गांव पकड़ने पहुंची तीन थानों पुलिस टीम अपनी ही सुरक्षा नहीं कर सकी और सीओ, एसओ समेत आठ पुलिस कर्मी शहीद हो गए। गोली लगने से पांच पुलिसकर्मी, एक होमगार्ड और एक एसओ का प्राइवेट ड्राइवर घायल हैं। इसमें होमगार्ड की हालत गंभीर है। सूबे में यह पहली बार है, जबकि इतनी बड़ी संख्या में पुलिस वाले शहीद हुए हैं। यह खबर शहीदों के घर पहुंचते ही कोहराम मच गया।

कानपुर में मुठभेड़ के दौरान शहीद सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा बेहद दिलेर थे। कांस्टेबल से सीओ तक का सफर उन्होंने अपनी दिलेरी की दम पर ही तय किया था। बांदा जिले के गिरवां क्षेत्र के सहेवा गांव निवासी सीओ देवेंद्र मिश्र बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता महेश प्रसाद शिक्षक थे। खुरहंड स्कूल से ही हाईस्कूल करने के बाद उन्होंने एचआइसी कॉलेज से इंटर पास किया था। इसके बाद जेएन कॉलेज से स्नातक करने के बाद वर्ष 1981 में कांस्टेबल के पद पर पुलिस विभाग में नौकरी पाई थी।

शहीद सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा विभागीय परीक्षा पास कर एसआई बने और कानपुर की अहिरवां चौकी इंचार्ज का पद संभाला। इसके बाद वर्ष 2004-05 में वह उन्नाव जनपद के आसीवन थाना इंचार्ज की पोस्ट पर रहे। यहां उन्होंने एक शातिर अपराधी का एनकाउंटर किया। विभाग ने उनकी दिलेरी का इनाम आउट ऑफ टर्न प्रमोशन के रूप में दिया और प्रभारी निरीक्षक बनाया। तकरीबन दो वर्ष पहले ही वह प्रमोट होकर क्षेत्राधिकारी बने थे। परिवार में उनकी आखिरी बार बात जुड़वा भाई राजीव मिश्र से हुई थी। कोरोना संक्रमण काल पर चिंता जताते हुए उन्होंने परिवार के सभी सदस्यों की कुशलक्षेम पूछी थी और हालात सामान्य होते ही घर आने का वादा किया था।

आतंक से लोहा लेते शहीद हुआ बैसवारे का लाल : कानपुर में आतंक का पर्याय बने अपराधी से लोहा लेते जिन पुलिस के जवानों ने सीने पर गोली खाई उनमें एक बैसवारे का लाल भी शामिल है। तड़के जब यह खबर शहीद दारोगा महेश यादव के रायबरेली जिले के सरेनी थाना क्षेत्र के दबपुरा बनपुरवा मजरे हिलौली गांव पहुंची तो कोहराम मच गया। पुलिस और प्रशासनिक अमले के साथ गांव के तमाम लोग पहुंच गए। महेश यादव ने वर्ष 1996 में पहली बार खाकी पहनी थी। सिपाही के पद पर सहारनपुर में उनकी भर्ती हुई थी। वर्ष 2014 में हुई परीक्षा में पास होने के बाद दारोगा बन गए। इस पर सबसे पहले एसएसपी कानपुर के पीआरओ की जिम्मेदारी मिली।

महेश यादव अपनी मेहनत और लगन की बदौलत कानपुर नगर के कई थानों की कमान संभाली। इस वक्त उनकी तैनाती शिवराजपुर थाने में बतौर थानाध्यक्ष थी। कुख्यात अपराधी विकास दुबे से हुई मुठभेड़ में वह भी अपनी टीम के साथ पहुंचे थे। बदमाशों से भिड़ंत में दारोगा के शहीद होने की खबर शुक्रवार की सुबह करीब पांच बजे उसके घर पहुंची तो यहां कोहराम मच गया। पिता देवनारायण व भाई राजेश यादव गांव के अन्य लोगों के साथ शहीद का पार्थिव शरीर लेने कानपुर चले गए। इधर, घर में उनकी मां राम दुलारी, पत्नी सुमन, बेटे विवेक और विराट समेत अन्य परिवारीजनों का रो-रोकर हाल बेहाल हैं।

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दारोगा अनूप सिंह की कानपुर में हुई थी पहली तैनाती : कानपुर में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे गैंग से मुठभेड़ में शहीद हुए अनूप सिंह की दारोगा के पद पर पहली तैनाती कानपुर में वर्ष 2017 में हुई थी। 21 वर्ष की उम्र में 2004 में कांस्टेबल पद पर उनका चयन हुआ था। प्रतापगढ़ जिले के मानधाता थाना क्षेत्र के बेलखरी गांव निवासी दारोगा अनूप कुमार सिंह ने पुलिस विभाग में भर्ती होने के बाद 10 साल प्रयागराज में नौकरी की थी। सिपाही की नौकरी के दौरान भी उनमें दारोगा बनने का जुनून था। वह वर्ष 2015 बैच के दारोगा थे। उन्नाव में ट्रेनिंग करने के बाद अगस्त 2017 में उनकी तैनाती कानपुर नगर जिले में हुई। तब से वहीं पर तैनात थे। परिवार के लोग उनकी शहादत की खबर सुनकर शुक्रवार सुबह ही कानपुर चले गए। घर में मां और पत्नी हैं। आस पड़ोस और रिश्तेदार उन्हें ढांढस बंधा रहे हैं।

चचेरे भाई के निधन पर 14 मई को घर आए थे दारोगा नेबूलाल : कानपुर में हिस्ट्रीशीटर गैंग से मुठभेड़ में दारोगा नेबूलाल के शहीद होने की खबर शुक्रवार को प्रयागराज के हंडिया थाने से उनके घर भीटी नउआन पहुंची तो चीत्कार मच गया। पिता, पत्नी, भाई सहित परिवार व गांव के लोग कानपुर रवाना हो गए। शहीद दारोगा का बड़ा बेटा कानपुर में रहकर नीट की तैयारी कर रहा है। दारोगा नेबू लाल वर्ष पुत्र कालिका प्रसाद 1990 में पुलिस में कॉस्टेबल पद पर भर्ती हुए थे। 2009 में परीक्षा पास कर वह 2011 में दारोगा हुए थे। 2013 में कानपुर में तैनात हुए। वहां अकेले रहते थे। कुछ दिन से बड़ा बेटा कानपुर में रहकर नीट की तैयारी करता है। वह चार भाइयों व एक बहन में सबसे बड़े थे। उनके परिवार में बेटी सुनीता (30), बेटा अरविंद (23), मधुबाला (18) व बेटा हिमांशु (17) है। वह चचेरे भाई संतोष (30) के निधन पर घर आये थे और 24 मई को ड्यूटी पर कानपुर चले गए थे।

गम में डूब गया मथुरा का गांव नवादा : कानपुर में बदमाशों से हुई मुठभेड़ में कान्हा की नगरी मथुरा के लाल ने भी अपना बलिदान दे दिया। बिठूर में तैनात सिपाही जितेंद्र पाल सिंह के बलिदान की खबर मिली तो हर दिल में गुस्से का गुबार भर गया, आंख बेटे की याद में नम हो गईं। मूलत: मथुरा के रिफाइनरी थाना क्षेत्र के गांव बरारी निवासी तीर्थपाल सिंह के तीन बेटों में जितेंद्र सबसे बड़े थे। करीब दो दशक से तीर्थपाल नवादा क्षेत्र के इंदिरा आवास कॉलोनी में रहने लगे थे। 2015 के बैच में जितेंद्र सिपाही के रूप में पुलिस विभाग में भर्ती हुए। शुक्रवार तड़के तीर्थपाल को फोन पर जितेंद्र के घायल होने की सूचना मिली थी। वह पत्नी रानी, छोटे बेटे जिनेंद्र, पड़ोसी मोतीराम, महेश, विनोद, संता कानपुर के लिए रवाना हो गए, लेकिन कुछ देर बाद जितेंद्र पाल के बलिदान की खबर मिली, तो कोहराम मच गया। जितेंद्र पाल जब पुलिस में भर्ती हुए, स्वजन ने उनसे बहुत सी उम्मीदें बांध लीं। मृदुभाषी जितेंद्र सभी के हर काम में शरीक होते थे। 23 जून को ही जितेंद्र मथुरा आए थे, यहां लोगों से मिलना उनकी आदत में शामिल था। सुबह जब जानकारी मिली, तो लोगों को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ।

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पल भर में काफूर हो गईं जन्मदिन की खुशियां : कानपुर में दबिश देने गई पुलिस पर हुए जानलेवा हमले में शहीद हुए झांसी के सुल्तान सिंह का गुरुवार को जन्मदिन था। परिवार के साथ ही तमाम परिचितों से शुभकामनाएं लेने के कुछ समय बाद ही सुल्तान को दबिश में जाना पड़ा और यह घटना हो गई। उनके घर में मातम पसरा हुआ है, कुछ परिजन सूचना मिलते ही कानपुर रवाना हो गए हैं। परिवार के अन्य लोगों का रो-रोकर बुरा हाल है। कानपुर में तैनात सुल्तान सिंह पुत्र हरप्रसाद वर्मा का घर तो बूढ़ा भोजला में है, पर वह अपने ननिहाल मोहल्ला चौक दमेला मऊरानीपुर में शुरू से रहे। वहीं शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनकी भर्ती भी मऊरानीपुर से ही हुई। सुल्तान की ससुराल उरई में है और वे अपनी पत्नी उर्मिला व 8 साल की बेटी चेरी को वहीं छोड़ आए थे। गुरुवार को पूरा परिवार उनका जन्मदिन मना रहा था, पर कुछ ही समय बाद परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट गया। बूढ़ा भोजला स्थित सुल्तान के घर पर उनके भाई-बहन ही मिले, अन्य लोग कानपुर जा चुके थे। घर से बिलखने की आवाजों ने फिजां को गमगीन कर दिया था। बहन कलावती का कहना था कि उनका भाई वीरगति को प्राप्त हुआ है, उन्हें अपने भाई पर गर्व है। मऊरानीपुर स्थित ननिहाल में भी जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा है।

आगरा निवासी बलिदानी बबलू के गांव में कोहराम : कानपुर में बदमाशों से मुठभेड़ में बलिदान हुए कांस्टेबल बबलू का आगरा जिले का गांव फतेहाबाद का पोखर पांडेय गमगीन है। शुक्रवार सुबह बेटे के बलिदान की जानकारी होते ही पिता व परिवार के अन्य सदस्य कानपुर चले गए। अब गांव के लोग और रिश्तेदार उनके घर पर हैं। गांव वालों को बेटे को खोने का गम है और अपराधियों पर गुस्सा भी है। उनका कहना है कि अब उनका खात्मा करना चाहिए। फतेहाबाद कस्बे से दो किमी दूरी पर स्थित गांव पोखर पांडेय निवासी छोटेलाल के बेटे बबलू वर्ष 2018 में पुलिस में कांस्टेबल पद पर भर्ती हुए। कानपुर में ही ट्रेनिंग के बाद वहीं तैनाती मिली। वर्तमान में वे बिठुर थाने में तैनात थे। परिवार के लोगों ने बताया कि गुरुवार शाम सात-आठ बजे भाई दिनेश के मोबाइल पर बबलू का फोन आया था। उनसे हालचाल लिए। दिनेश के मोबाइल पर इसके 12 घंटे बाद ही दुखद सूचना मिली। कानपुर से किसी पुलिस अधिकारी ने उन्हेंं फोन कर भाई के बलिदान के बारे में बताया। इसके बाद घर में कोहराम मच गया। पिता छोटेलाल, भाई दिनेश व परिवार के अन्य सदस्य कानपुर चले गए। घर में अभी कोहराम मचा है।

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राहुल ने पत्नी से कहा था-‘लौटकर बात करेंगे’  : कानपुर में शहीद होने वाले पुलिसकर्मियों में एक गाजियाबाद जिले के मोदीनगर की देवेंद्रपुरी कॉलोनी निवासी राहुल कुमार भी हैं। उन्होंने शाम को ही अपनी पत्नी से कहा था कि मुठभेड़ में जा रहा हूं, लौटकर बात करेंगे। लेकिन, क्या पता था कि काल बनकर बैठे बदमाश उनको दोबारा से किसी से बात करने का मौका ही नहीं देंगे। मूलरूप से ओरैया जिले के दिव्यापुर थाना क्षेत्र के रूरूकलां गांव निवासी राहुल के पिता ओमकुमार भी यूपी पुलिस में ही थे। वे मोदीनगर में साहबनगर, निवाड़ी रोड, मोदीपोन चौकी प्रभारी रहे थे। राहुल 2016 में यूपी पुलिस में भर्ती हो गए थे। पहली पोस्टिंग कानपुर में ही हुई थी। राहुल की शादी दिल्ली निवासी दिव्या से करीब डेढ़ साल पहले हुई थी। दो माह की बेटी नित्या भी है। भाई राकेश ने बताया कि राहुल शुरू से ही पुलिस में भर्ती होना चाहते थे। उनको यह प्रेरणा पिता से मिली। उन्होंने बताया कि पिता व मां को उनके बीमार होने के चलते अभी तक राहुल के शहीद होने की जानकारी नहीं दी गई है। पिता को यह कहकर कार में बैठाया गया कि राहुल के पैर में गोली लगी है। उसका बेहतर इलाज कराने के लिए कानपुर चलना है।

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