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राजस्थान में एक हाथ से नहीं, दोनों ही हाथों से बजी थी बगावत की ताली

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जयपुर । एक कहावत है ताली एक हाथ से नहीं बजती है, लेकिन राजस्थान के राजनीतिक घटनाक्रम पर विश्लेषण करने वाले बुद्धिजीवी अगर शासन सचिवालय में सचिन पायलट, विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा की ब्यूरोक्रेसी के साथ कार्यशैली को जानते होंगे, यह जरूर कहेंगे, कि पिछले डेढ़ साल से ताली दोनों ही हाथों से बज रही थी। इन तीनों दिग्गज नेताओं का ब्यूरोक्रेसी के साथ रवैया अड़ियल जैसा ही रहा। लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सचिन पायलट समेत इन दोनों दिग्गज मंत्रियों को भी उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सबसे पहले बात करें, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की, तो जिस दिन शासन सचिवालय में डिप्टी सीएम बनने के बाद पहली बार आते है, तो मुख्य भवन में अपने कक्ष को बाहर से देखते, जबकि आईएएस अधिकारी पदभार ग्रहण कराने की औपचारिकता के कागज लेकर खड़े रहते है। पायलट आईएएस अफसरों से पूछते है कि यहां कौन-कौन अफसर बैठते है, तो आईएएस अफसर बता देते है कि यहां फला-फला अफसर बैठते है। इसके बाद पायलट सीएमओ की बिल्डिंग में जाते है। यहां भी पायलट बेसमेंट से लेकर टॉप फ्लोर को देखते है, लेकिन जैसे ही अधिकारी कहते है कि यहा सिर्फ मुख्यमंत्री ही बैठ सकते है, अन्य मंत्री नहीं, तो इसके बाद मंत्रिमंडल सचिवालय का पायलट दौरा करते है। तो यह पहला दिन रहता है सचिन पायलट का। इसके बाद मुहुर्त के साथ पायलट शासन सचिवालय में अपने कक्ष में पदभार ग्रहण करते है। लेकिन डेढ़ साल मेें कभी-कभार ही इस कमरे में वह बैठे होंगे। इसके अलावा आयोजना मंत्री होने के नेता योजना भवन में भी उन्होंने अपना कक्ष तैयार करवाया था। जिससे कि वह विदेशी डेलीगेट्स या अपने कार्यकर्ताओे के साथ खुलकर बैठ सके। यहां भी वह कम आए। अगर मीडियाकर्मी से बातचीत का रवैया देखे, जो शासन सचिवालय में न्यूज चैनल, प्रिंट के पत्रकार न्यूज कवर करते है, उन्हे मोबाइल पर कभी भी बाइट नहीं दी, और बातचीत नहीं की। या तो बंगले आने को कह दिया, या पीसीसी आने को कह दिया। यह तो पायलट का रवैया था, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास वित्त विभाग होने के कारण पायलट की प्रशासनिक स्वीकृति होने के बाद जो फाइलें सीएम तक जाती थी, वह लौट आती थी। वित्त विभाग कुछ ना कुछ अंडगा लगा ही देता था।

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अब बात करें, पूर्व खाद्य मंत्री रमेश मीणा की, तो पहले तो यूडीएच मंत्री शांतिधारीवाल के साथ कैबिनेट सबकमेटी की बैठकों में कभी डॉ. किरोडीलाल मीणा के मसले पर, तो कभी एससी-एसटी के बैकलॉक और केसों को लेकर उलझते रहे। इसके बाद डीएसओ के ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर अपने ही विभाग की सचिव से उलझ पड़े। साथ ही बिना सचिव की जानकारी के अपने चेहते अधिकारियों के जरिये कभी पेट्रोल-पंप तो कभी खाद्य सामानों के स्टोरों पर छापे पड़वाते रहे। विवाद बढ़ता देख सचिव मुग्धा सिन्हा का तबादला हो गया।

इसके बाद बात करें पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह, तो इन्होंने तो सबसे पहले पर्यटन भवन जाते ही जाने क्या दिख जाए, राजस्थान टूरिज्म का लोगो बदलवाकर पधारो म्हारे देस करवा दिया। साथ ही राजस्थान टूरिज्म के लोगो में भरतपुर के डीग पैलेस का फोटो लगवा दिया। फिर डीग पैलेस के लोगो लगाकर राजस्थान टूरिज्म के प्रचार-प्रसार की बड़ी-बड़ी बातें की। यहां यह महोदय पहले आरटीडीसी के चैयरमेन आईएएस से उलझे। सीएम से दखल करवाकर विदेश यात्रा रूकवा दी। फिर संबंधित आईएएस ने दूसरे राज्य ही जाना मुनासिब समझा। इसके बाद विश्वेंद्र सिंह अपनी मनमानी नहीं होने के कारण प्रमुख शासन सचिव श्रेहा गुहा से उलझते रहे। साथ ही देवस्थान विभाग के अधिकारियों से भी नहीं बनी। इसके चलते फाइलों पर साइन नहीं करते, तो मुख्यमंत्री कार्यालय से ही फाइलें साइन होकर आती थी। तो कुल मिलाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्तर से और इन तीन मंत्रियों ने दोनों हाथों से ही ताली बजाई और नौबत बर्खास्तगी और बगावत तक आ पहुंची।

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