भोपाल। मध्य प्रदेश से राज्यसभा में राजघराने से दो नेताओं का प्रवेश हो गया है। ‘राजा’ पुकारे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ‘महाराज’ कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा चुनाव 2019 में मिली हार के बाद राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंचे हैं। ये दोनों नेता पहले कांग्रेस से राज्यसभा में जाने वाले थे, लेकिन वरीयता क्रम में ऊपर स्थान नहीं मिलने व अन्य कारणों से सिंधिया ने पार्टी छोड़ी और शुक्रवार को दोनों नेता राज्यसभा चुनाव जीत गए। एक समय प्रदेश के ये दोनों राजघराने के नेता कांग्रेस नेता राहुल गांधी के करीबी हुआ करते थे, लेकिन अब परस्पर विरोधी राजनीतिक दल भाजपा-कांग्रेस से राज्यसभा में बैठेंगे।
राज्यसभा चुनाव में जीते महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर राजघराने से आते हैं, जिनके परिवार से दादी विजयाराजे सिंधिया से लेकर पिता माधवराव सिंधिया, बुआ वसुंधरा राजे व यशोधरा राजे सक्रिय राजनीति में रही हैं। पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद राजनीति में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया चार बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते और केंद्रीय मंत्री रहे।
प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व से खुश नहीं थे सिंधिया
सिंधिया 2019 में लोकसभा चुनाव हारे और करीब नौ महीने तक राजनीति में संघर्ष किया। सिंधिया वरीयता पर अड़े राज्यसभा में मध्य प्रदेश की तीन सीटें रिक्त होने की स्थिति बनी तो प्रदेश में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की वजह से कांग्रेस के खाते में दो सीटें आने की संभावना बनी, लेकिन दूसरी सीट पर कश्मकशपूर्ण मुकाबले की स्थिति बनने की आशंका थी, इसलिए सिंधिया ने वरीयता में पहला नंबर चाहा, जिस पर पार्टी नेताओं के टालमटोल रवैए से वे दुखी हो गए। वे पहले से भी प्रदेश में पार्टी नेतृत्व से खुश नहीं थे।
भाजपा ने उठाया परिस्थिति का लाभ
भाजपा ने इस परिस्थिति का लाभ उठाया और सिंधिया को अपने साथ लेकर कांग्रेस सरकार गिराई। इसमें सिंधिया को राज्यसभा भेजने का आश्वासन मिला था। सिंधिया के साथ से प्रदेश में राज्यसभा चुनाव का गणित बदला और भाजपा को एक सीट का जो नुकसान होना था, वह नहीं हो पाया। 19 जून को भाजपा से ‘महाराज’ सिंधिया आखिरकार राज्यसभा में पहुंच गए।
‘राजा’ हार के बाद जीते राजा यानी दिग्विजय सिंह मप्र के गुना जिले के राघौगढ़ के शाही परिवार से आते हैं। दिग्विजय के पिता बलभद्र भी स्थानीय निकाय में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे थे। उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह यानी ‘छोटे राजा’ और पुत्र जयवर्धन सिंह ‘बाबा’ भी राजनीति में हैं। भोपाल से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से करारी हार के बाद भी दिग्विजय डटे रहे और संसदीय क्षेत्र में लोगों के बीच पहुंचकर उनकी मदद करते रहे।
दिग्विजय सिंह ने राज्यसभा चुनाव को रोचक बनाने की कोशिश की थी
राज्यसभा सदस्य के नाते वे नौ अप्रैल 2020 तक सक्रिय रहे, लेकिन खुद को राजनीति में सक्रिय बनाए रखने के लिए उन्होंने राज्यसभा की सीट पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ की मदद ली और दिल्ली में हाईकमान तक बात पहुंचाई। आरक्षित वर्ग के बरैया को मैदान में उतरवाया सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद दिग्विजय सिंह ने ही फूल सिंह बरैया का आरक्षित वर्ग का कार्ड फेंककर राज्यसभा चुनाव को रोचक बनाने की कोशिश की थी।
मार्च की तत्कालीन परिस्थितियों में कांग्रेस सरकार होने से बरैया के लिए वोट की कोशिश हो सकती थी, लेकिन सरकार गिरने के बाद बरैया की जीत मुश्किल हो गई। इस बीच दिग्विजय की जीत को सुनिश्चित करने के लिए 52 वोट की जगह 54 की रणनीति बनी और उन्हें न केवल 54 बल्कि 57 वोट मिल गए। इसी के साथ राजा ने 19 जून को राज्यसभा में दूसरी पारी के लिए जीत दर्ज की।