ग़ाज़ियाबाद अंकुर अग्रवाल
हमेशा से ही सुर्खियों में रहने वाला गाजियाबाद का विकास भवन एक बार फिर बना चर्चा का विषय।विकास भवन के वरिष्ठ सहायक जिला दिव्यांगजन शशक्तिकरण में तैनात महिला अधिकारी ने लगाया जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी पर मानसिक एवम अन्य तरह के उत्पीड़न का आरोप।मुख्य विकास अधिकारी मामले पर बनाये बठी है चुप्पी।कागजी तौर पर जांच के लिए बनाए गए कमेटी।महिला अधिकारी पहुंची डिप्रेशन में।
दरअसल पूरा मामला गाजियाबाद के विकास भवन के वरिष्ठ सहायक , जिला दिव्यांगजन शशक्तिकरण अधिकारी कार्यलय का है जहां महिला अधिमारी तैनात हैं जिनके सीनियर अधिकारी रजनीश कुमार पांडेय ( जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी / जिला दिव्यांगजन शशक्तिकरण अधिकारी गाज़ियाबाद हैं जोकि महिला अधिकारी का कई तरह से उत्पीड़न कर रहे हैं।महिला ने इसकी शिकायत जब उच्च अधिकारियों से की तो साहब ने महिला अधिकारी को ओर भी ज्यादा परेशान करना शुरू कर दिया।साहब ने महिला पर दबाव बनाना शुरू कर दिया साथ ही उनसे लिखित में जवाब भी मांगे जाने लगे।ऑफिस विलंब से आने पर जब महिला ने साहब को बताया कि उन्हें महिला को होने वाली दिक्कत है तो साहब ने कहा लिखित में दो।जब महिला ने लिखित में बताया कि उसे माहवारी(महिलाओ को होने वाली दिक्कत)है तो साहब ने लिखित जवाब में कहा कि आपको देखकर ऐसा प्रतीत नही होता।आखिरकार ये क्या जवाब था?
इतना ही नही साहब यह भी शांत नही हुए और महिला अधिकारी को कभी वार्षिक वेतन वृद्धि को निरस्त कर देनावर्षिक गोपनीय प्रविष्टि, बोनस का विलंब से देना वेतन समय से ना देना,बच्चों की देखभाल के लिए अवकाश ना देना,शाम को भी देर से ऑफिस से छोड़ना, आदि तरीको से परेशान करना शुरू कर दिया।महिला जिसके चलते मानसिक रूप से भी परेशान हो गयी और डिप्रेशन में चली गयी।
हद तो तब हो गयी जब महिला ने इसकी शिकायत मुख्य विकास अधिकारी से की तो विकास अधिकारी जोकि खुद एक महिला हैं उन्होंने इस मामले की जांच के लिए 3 सदस्यों की कमिटी गठित कर अपनी इतिश्री कर ली।मगर साहब ने शिकायत होने के बाद महिला अधिकारी का वेतन दो महीने से रोक दिया।परेशान महिला अपनी परेशानी लेकर कर्मचारियों की संस्था के पास पहुंची मगर कुछ हासिल ना हुआ।महिला के पति के मुताबिक इस प्रकरण के बाद से महिला बेहद परेशान है और उसका जीवन भी अस्तव्यस्त है।जिसके कारण परिवार भी बिखर रहा है।वो भी अपनी पत्नी को उच्च अधिकारियों के पास ले गया मगर नतीजा शून्य ही रहा।
हैरानी की बात ये है कि जब इस पूरे मामले में जब हमारी टीम मुख्य विकास अधिकारी जो खुद भी एक महिला है के पास पहुंची तो वो इस पूरे मामले में कुछ भी कहने से बचती नजर आयी।बड़ा सवाल ये है कि जहां एक ओर केंद्र एवम प्रदेश सरकार महिला शशक्तिकरण की बात लड़ती है वही दूसरी ओर सरकार के ही नुमाइंदे इस कथन को पलीता लगाते हुए नजर आते हैं।