कोविड -19 महामारी काल कई परिवारों पर मुसीबत बनकर टूटा है। कोविड की पहली लहर ने एक महिला को विधवा किया जबकि दूसरी ने बेटे का रोजगार भी छीन लिया। इससे घर में खाने के लाले पड़ गए थे। पिछले 8-10 दिनों से अलीगढ़ में रहने वाले एक परिवार को खाने का एक दाना भी नसीब नहीं हुआ है। संस्था को जब इस परिवार के बारे में पता चला तो उसने सभी को अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया है।
एक छोटी सी कोठरी में एक मिट्टी के चूल्हे पर पानी में रखे गए आलू और दो-चार बर्तन व काफी पुराने कपड़े परिवार की गरीबी के गवाह बने। घर पर न तो खाना पकाने का सामान मिला और न ही अन्न का एक दाना। ऐसे में साफ जाहिर होता है, कि परिवार बहुत बुरे हालातों से गुजर रहा था।
भूख से बिलबिलाता यह परिवार कई दिनों से जिंदगी से संघर्ष कर रहा था, मगर जिम्मेदारों को इस बात की हवा तक नहीं लगी। वह तो शुक्र है एक स्वयंसेवी संस्था का जिसने 5 सदस्यों के इस कुनबे को नई जिंदगी दी और इन्हें समाज के सामने लाकर खड़ाकर सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी।
पंचायती राज व्यवस्था में हर परिवार और घर को सरकारी योजनाओं को लाभ देने का प्रावधान है। इसके लिए गांव में 6 निगरानी समितियों के साथ ही ग्राम पंचायत सचिव से लेकर ADO पंचायत-बीडीओ को जिम्मेदारी दी गई हैं। मगर इन्होंने भी शायद यह अपनी जिम्मेदारी नहीं समझी। अगर समय रहते गांव की समितियाँ और सचिव जिम्मेदारी समझ लेते तो शायद परिवार की यह हालत नहीं होती।
गाँव वालों ने कहा- ग्राम पंचायत सचिव गांव में नहीं आते
हिन्दुस्तान की टीम इस नगला मंदिर गांव जब पहुंची तो ग्रामीण अपना-अपना दुखड़ा लेकर उनके सामने बैठ गए। ग्रामीणों ने कहा कि गांव में ग्राम पंचायत सचिव पूरे 5 सालों में 5 बार भी नहीं आया है। ना ही ग्रामीणों की कोई खोज खबर लेता है। निगरानी समिति का तो अता-पता भी नहीं था। आकाश ने बताया है कि अखबार में खबर छपने के बाद जिस तरह से इस सचिव की संवेदना जगी है। वैसे अगर पहले ही जग गई होती तो आज इस परिवार की हालत ऐसी न होती।
हर परिवार को राशन की व्यवस्था कराने वाला विभाग भी बेकाबू
अलीगढ जिले में गरीब तबके के लोगों को राशन कार्ड और खाद्यान्न उपलब्ध कराने वाले जिम्मेदार महकमें के अधिकारी भी बेकाबू हो रहे हैं। इस परिवार के पास ना तो राशन कार्ड है और ना ही घर में खाद्यान्न का एक दाना था। पूरा परिवार भूख से बिलख रहा था। मगर अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। यहां तक की राशन डीलर ने भी उन्हें खाद्यान्न नहीं दिया था। ग्रामीणों ने बताया की परिवार की हालत 2 महीने से बहुत खराब थी।
जेब से 5,000 की मदद करके आया हूं : ग्राम पंचायत सचिव
यहाँ के ग्राम पंचायत सचिव संजीव चौधरी ने कहा है कि परिवार से अस्पताल में मिलकर आया हूं। उन्हें 5000 रुपये की मदद जेब से कर के आया हूं। अब गांव में पहुंचकर उनके आधार कार्ड और अंत्योदय कार्ड बनवाने की व्यवस्था भी बन रहा हूँ। अब सवाल उठता है कि मामला प्रकाश में आने के बाद ही सचिव के जेब से पांच हज़ार रुपये क्यों निकले? जबकि अबसे कुछ दिन पहले ही राहत सर्वे में परिवार का नाम आने पर अकाउंट नंबर न होने से उनका नाम सम्मलित नहीं किया गया था? क्या तब सचिव को उनकी फिक्र नही हुई कि आखिर क्यों इस परिवार का खाता नंबर नहीं है? इसके बारे में गांव में जानकारी क्यों नहीं कराई? उस समय वह जिम्मेदारी निभा रहे थे या जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे थे? अब यह तो वहीं जान सकते हैं।
CDO अंकित खंडेलवाल ने कहा, ‘प्रशासन की टीम गांव में पहुंची थी। SDM व BDO की टीम भी गई थी। परिवार की पूरी मदद कराई जा रही है। राशन कार्ड, आधार कार्ड, पेंशन, आयुष्मान कार्ड व जाब कार्ड आदि उनकी पात्रता को लेकर उपलब्ध करा दिया जाएगा। साथ ही परिवारों की मदद के लिए हम तहसील व ब्लाक स्तर पर कैंप लगाये जायेंगे। जहां जरुरतमंद पहुंच कर सरकारी योजनाओं का लाभ पा सकते हैं।’