जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. सतीश पूनिया ने कहा कि आज 25 जून है, पुरानी पीढ़ी तो जानती है, लेकिन नई पीढ़ी इस बात से भलीभाँति परिचित नहीं है, युवा पीढ़ी को पता नहीं है कि यह दिन क्या महत्व रखता है। 25 जून, 1975 भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास के काला अध्याय को पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के लोकतंत्र पर पहरा बैठा दिया गया था, पूरा देश सड़कों पर उतरा और सरकार को जनता की चुनौती मिली।
‘‘आपातकाल’’ भारतीय राजनीति का काला अध्याय विषय पर डाॅ. सतीश पूनिया ने फेसबुक के माध्यम से संवाद करते हुए कहा कि ऐसे समय में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा, ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’। यह प्रासंगिक और समसामयिक पंक्तियां लिखी थीं। हम सब जानते हैं कि भारत एक सुन्दर सा देश है, उसका समृद्ध इतिहास और परम्परा, संस्कृति, धर्म, इतिहास इन सब परिस्थितियों से रूबरू होता हुआ एक सुन्दर सनातन देश दुनिया का प्राचीन गणतंत्र गणराज्यों का उल्लेख करता है। राजा-महाराजाओं का जिक्र होता है, लेकिन काल और नियति ने ऐसे सनातन देश के लोकतंत्र पर प्रहार किया। मुगलों से संघर्ष, अंग्रेजों से संघर्ष और ऐसे सुन्दर देश की नियति पर प्रहार पहले मुगलों के आक्रमण के रूप में था। कैसे भूल पाएगा भारत महाराणा प्रताप के स्वाभिमानी आंदोलन को, पन्नाधाय के संघर्ष की एक लम्बी सूची है। देश कैसे भूल सकता है पृथ्वीराज चैहान को, महाराजा सूरजमल को, राजा रणजीत सिंह को? एक लम्बे संघर्ष का इतिहास भारत के स्वाभिमान की ज्वाला तब भी जली थी। फिर समय बदला, अंग्रेजों का आगमन हुआ, अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी गई। भारत शायद दुनिया का पहला ऐसा देश होगा, जिसकी आजादी की लड़ाई शहीदों के खून से लिखी गई। हम कैसे भूल पाएंगे सुभाष चन्द्र बोस को, भगत सिंह, राजगुरु ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाई, जो वंदे मातरम कहते हुए फांसी के फंदे से झूल गए।
डाॅ. पूनिया ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को आजादी का जश्न तो था, लेकिन देश के विभाजन का दंश भी था। उस समय भारत के एक उत्कृष्ट संविधान की बुनियाद रखी जा रही थी। नवम्बर 1950 को जो संविधान तैयार हुआ, जो प्रस्तावित हुआ, वो राजेन्द्र प्रसाद, डाॅ. भीमराव अम्बेडकर समेत एक लम्बी सूची है, इन सब विद्वान राजनेताओं ने जिस तरीके से अपनी बुद्धि, कौशल से भारत का उत्कृष्ट संविधान जनता को समर्पित किया।
उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि 25 जून, यह काला दिन है। जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने, उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। एक छोटे कद के स्वाभिमानी व्यक्ति ने ‘‘जय जवान जय किसान’’ के नारे को बुलंद करते हुए भारत के लोगों में एकता और स्वाभिमान का भाव जगाया। किन्तु काल की नियति ने लाल बहादुर शास्त्री को अचानक हमसे छीन लिया और इन्दिरा गांधी का आगमन हुआ। कहा जाता है कि जब इन्दिरा गांधी का आगमन हुआ तब उनको गूंगी गुड़िया कहा जाता था और यही गुड़िया तानाशाह बनीं।
डाॅ. पूनिया ने कहा कि जब इन्दिरा गांधी बहुमत का आनन्द ले रही थीं। तब यह कांग्रेस सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल की कांग्रेस नहीं थी। कांग्रेस के ही एक नेता ने कहा ‘इन्दिरा इज इण्डिया-इण्डिया इज इन्दिरा’ हो चुका था। निरंकुश और अहंकार के भाव ने इन्दिरा को निरंकुश और तानाशाह के भाव में तब्दील कर दिया था।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1971 में बहुत सारी बातों की सुगबुगाहट हो चुकी थी, लेकिन 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक निर्णय से भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मच गई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने जो फैसला दिया, उसमें रायबरेली से इन्दिरा गांधी के निर्वाचन को रामनारायणजी की याचिका पर खारिज कर दिया, उनकी सदस्यता को निलम्बित कर दिया और यही कारण है कि इसके पीछे आपातकाल की बुनियाद रखी गई। डाॅ. पूनियां ने कहा कि यदि विवेक होता तो शायद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करते और दूसरा कोई प्रधानमंत्री बन सकता था, किन्तु उस समय 70 के दशक में एक किस्म से देश में अराजकता की बुनियाद शुरू हो चुकी थी। उस दौरान मुंबई में 12 हजार हड़तालें हुईं। गुजरात के मोरबी, अहमदाबाद में 1973 में मैस की फीस में बढ़ोतरी के लिए विद्यार्थियों ने आंदोलन किया। छात्रों ने विश्वविद्यालय के आदेश को मानने से इनकार कर दिया, जिसके उपरांत वहां पर सेना को बुलाना पड़ा। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों की फीस वृद्धि ने छात्रों को उद्वेलित किया।
डाॅ. पूनिया ने कहा कि इस तरह का संघर्ष चल रहा था और उस संघर्ष की शुरुआत बिहार से चल पड़ी थी। बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ, महंगाई के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की अपील की गई और गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन और बिहार की समग्र क्रांति शामिल होते हुए पूरे देशभर में एक क्रांति का सूत्रपात हुआ। इसलिए 25 जून 1975 को ही एक बड़ी रैली दिल्ली में हुई, उसको रोकने की कोशिश हुई और जब इतना सब कुछ हुआ तो इंदिरा गांधी आशंकित हुईं और उस आशंका के चलते 25 जून और 26 जून की मध्यरात्रि को आनन-फानन में जो संविधान में हमारे पूर्वजों ने हमें अधिकार दिया था, उन सब अधिकारों को निलम्बित कर दिया गया। व्यक्ति को समानता का अनुच्छेद 19 व्यक्ति की स्वतंत्रता का, व्यक्ति का विचार का, आजादी का अधिकार देता है, उनको निलम्बित कर दिया गया। अधिकारों के निलम्बित होने के बाद देश में भय का वातावरण बना। लोगों को नजरबंद कर दिया गया, जेलों में पहुंच दिया गया।
उन्होंने कहा कि 21 महीने तक भारी प्रताड़ना हुई, जिसमें सब बड़े नेता जेल चले गए। उस दौरान का एक प्रसंग आता है कि राज्यसभा में श्रद्धांजलि हो रही थी तो सुब्रम्ण्यम स्वामी ने श्रद्धांजलि के दौरान कहा ‘एक श्रद्धांजलि बाकी है, लोकतंत्र को भी श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए’, क्योंकि लोकतंत्र की हत्या हो चुकी है। ऐसे ही कई प्रसंग हैं, लेकिन आपातकाल लागू हो चुका था, देश में भय का वातावरण था।