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काला कृषि कानून वापस लेने को लेकर सिटी मजिस्ट्रेट को सौंपा ज्ञापन

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नीरज शर्मा की रिपोर्ट

बुलंदशहर : काला कृषि कानून वापस लेने हेतु महोदय आपको ज्ञात हो कि शासन की गलत नीतियों के कारण कृषि प्रधान देश भारत में खेती किसानी आज घाटे का धंधा बनकर रह गई है, कर्ज में डूबा किसान नित्य प्रति दिन आत्महत्या करने को विवश हो रहा है, एक ओर जहां घोटाले बाजों का सरकार बट्टे खाते में डाल कर उन्हें उपकृत कर रही है, तथा उद्योगपतियों के लाखों करोड़ों रुपयों के कर्ज सरकार ने माफ किए हैं, जबकि इसके 1/5 धन से पूरे देश के किसानों की ऋण माफी करके किसानों को आत्महत्या करने से बचाया जा सकता है, किंतु पता नहीं क्यों किसानों को ऋण राहत देने से आप व आप की सरकार के पेट में दर्द क्यों होता है।

दरअसल कृषि क्षेत्र में सरकारी सहायता की जिस तरह बंदरबांट होकर किसानों को लॉलीपॉप थमाया जा रहा है, स्वामीनाथन समिति की संस्तुतियों के अनुरूप कृषि उपज के मूल्य निर्धारण में आज तक लागत को आधार बनाने का कानून नहीं बनाया गया है, न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने के लिए आज तक कानून नहीं बनाया गया है, फसल बीमा के नाम पर किसानों को लूटा जा रहा है, देश में निजी करण के सहारे पूंजीपति वाद की आंधी चल रही है, और पूंजी वादियों की कुदृष्टि देश की कृषि उपज मंडियों में कृषि क्षेत्र पर लगी है, और प्रसन्न गत काला कृषि कानून इस पूंजी वादियों के कृषि उपज मंडियों को नष्ट भ्रष्ट करके कृषि बाजार को कंपनियों के हवाले करने एवं कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के माध्यम से कृषि क्षेत्र को भी प्रशन प्रशनगत काले कानून में कॉन्टैक्टर फार्मूला के प्रावधानों के सहारे किसानों को बर्बाद करके आप की सरकार ने पूंजी वादियों के हित में यह प्रसंग काले कानून बनाकर किसानों की पीठ में छुरा भोंकने का कार्य किया है, आपसे किसानों को ऐसी सपनों में भी आशा नहीं थी, सन 2014 से पूर्व प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार देने का झूठा वादा कर के युवाओं को अपने झगा 15 -15 रुपए का झूठा वायदा करके गरीबों को अपने थका किसानों की सहायता देने के नाम पर यह काला कानून बनाकर किसानों को अपने ठगा यदि किसानों के प्रति लोकतंत्र भी सहानुभूति आपके अंदर थी, तो केवल एमएसपी का एक ही कानून बना देते और कृषि उपज मूल्य निर्धारण में लागत को आधार बनाने का कानून बना देते यह तमाम प्रोपेगेंडा चलाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, आपकी इस कार्यशैली से ऐसा लगता है कि सरकार पूंजी वादियों के हितों की रक्षा करने वाली एक कठपुतली संस्था मात्र बनकर रह गई है।

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