नोएडा/गाजियाबाद । पश्चिमी उत्तरप्रदेश में दशकों से एक मशहूर कहावत चली आ रहे है ‘जिसके जाट, उसी के ठाठ’। इसे कहने का मतलब लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा का चुनाव, जाट मतदाताओं का जिधर भी रुख हो जाता है उसी का बेड़ा पार हो जाता है। 2017 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव इसका ताजा उदाहरण है। इससे पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जाट मतदाताओं ने अपना जनादेश कुछ इस तरह दिया कि पश्चिमी यूपी की सभी लोकसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में आ गईं थीं। यह सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा था। यहां पर भाजपा की एकतरफा जीत रही थी। सपा-बसपा और रालोद का मजबूत गठबंधन भी सिमट गया था।
सभी दलों की निगाहें जाट मतदाताओं पर क्यों :
वैसे तो पूरे यूपी में जाटों की आबादी 6 से 8 फीसद के आसपास है, लेकिन पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाट 17 फीसद से भी ज्यादा हैं। खासतौर से सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, बिजनौर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, नगीना, फतेहपुर सीकरी और फिरोजाबाद में जाटों की अच्छीखासी आबादी है। इन जिलों में गुर्जरों की संख्या भी काफी हद तक है, पर जाट थोड़े ज्यादा हैं। ऐसे में आगामी उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी दलों ने जाट वोटों को लेकर एक्टिविटी बढ़ा दी है, खासतौर से सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी ने।
किसान नेता राकेश टिकैत को लेकर भाजपा है सतर्क :
दरअसल, आने वाली 26 जून को तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन को पूरे सात महीने होने वाले हैं। इस बीच तीनों कृषि कानूनों को पूरी तरह से वापस लेने की मांग को लेकर गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन पर भाजपा भी नजर बनाए हुए है। खासतौर से भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता नरेश टिकैत पर भाजपा की खास नजर है, क्योंकि उत्तरप्रदेश में वह किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं। किसान नेता होने के साथ-साथ राकेश टिकैत जाट समुदाय से भी हैं। बस उत्तर भारत के कुछ राज्यों तक ही सिमटे राकेश टिकैत फिलहाल किसानों के एक बड़े नेता के तौर पर देखे जाने लगे हैं। उनका प्रभाव कम से कम पश्चिमी यूपी के किसानों के बीच तो है ही। ऐसे में यूपी में हो रहे जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने जाट वोटों के मद्देनजर वाले उम्मीदवारों के चयन में खास सतर्कता बरती है। इससे भाजपा अगले साल होने वाले यूपी के विधानसभा चुनाव 2022 में भी जाटों को अपने साथ पूरी तरीके से जोड़ना चाहती है, क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने भारी संख्या में भाजपा को वोट दिया था।
गौतमबुद्धगर में भी भाजपा ने जाट नेता पर लगाया दांव :
पिछले साढ़े छह महीने से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर भाजपा सचेत है। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पश्चिमी यूपी में ज्यादातर सीटों पर जाट उम्मीदवार आए हैं। यहां तक कि गुर्जर बहुल कहे जाने वाले गौतमबुद्धगर में भी भाजपा ने जाट नेता पर दांव खेला है। इसके अलावा भी सभी सीटों पर जहां पर जाट उम्मीदवारों को लाया गया है। इनका मकसद जाटों को यह दिखाना है कि भाजपा जाटों के साथ है और किसान मुद्दे पर अच्छीखासी से राजनीति हो रही है। भाजपा इसी बहाने भाकियू नेता राकेश टिकैत को निशाना बना रही है कि वह विपक्षी दलों का मोहरा हैं बस, उनका किसान के हितों से कोई भी लेना देना नहीं है।
भाजपा ने गौतमबुद्धनगर में जाट नेता अमित चौधरी को बनाया उम्मीदवार :
पश्चिमी यूपी में जाटों को लुभाने के लिए ही गौतमबुद्धनगर से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा ने अमित चौधरी पर ही दांव लगाया है। बावजूद इसके कि गौतमबुधनगर गुर्जर बहुल क्षेत्र है और जाटों की आबादी करीब 20 हजार के आसपास ही है, अमित चौधरी जाट समुदाय से हैं। भाजपा को भरोसा है कि ऐसा करने से भाजपा से जाटों की नाराजगी कुछ हद तक कम हो सकती है। पिछले दिनों भाजपा के पश्चिम यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल ने जिला इकाई और नवनियुक्त जिला पंचायत सदस्यों के साथ बैठक की और उनका मन टटोला था। गुर्जरों के विरोध के बावजूद आखिरकार अमित चौधरी का नाम ही तय हुआ था।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के अधिकांश जिलों में भाजपा ने जाट उम्मीदार ही उतारे :
बताया जाता है कि इस किसान आंदोलन की वजह से जाटों को खुश करने के लिए ही भाजपा ने पश्चिम यूपी के अधिकांश जिलों में जाट बिरादरी के उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं। इनमें गौतमबुद्धनगर से अमित चौधरी, बुलंदशहर से डॉक्टर अंतुल तेवतिया, मुजफ्फनगर से वीरेंद्र निरवाल व मेरठ से गौरव चौधरी मैदान में हैं। सहारनपुर से अभी प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं किया गया है। यहां पर भी जाट और गुर्जर बिरादरी के जिला पंचायत सदस्यों में अध्यक्ष पद के लिए जोर अजमाइश भी चल रही है।
पश्चिमी उतरप्रदेश को माना जाता है जाट और गुर्जर बहुल :
भाजपा ने गाजियाबाद से ममता त्यागी व हापुड़ से प्रमोद नागर को मैदान में उतारा है। यह अलग बात है कि यहां पर गुर्जर ओर दलित समुदाय भी बहुत बड़ी संख्या में हैं, बावजूद इसके पश्चिम यूपी को जाट और गुर्जर बहुल माना जाता है, लेकिन भाजपा ने सिर्फ हापुड़ जिले से ही गुर्जर बिरादरी का प्रत्याशी मैदान में उतारा है। इससे भाजपा को डर है कि पश्चिमी यूपी में सिर्फ एक सीट मिलने से गुर्जर समुदाय पार्टी से नाराज हो सकते हैं। वही भाजपा ने जाटों को खुश करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी है।
गौरतलब है कि यूपी की 17वीं विधानसभा के लिए चुनाव 11 फरवरी से लेकर 8 मार्च 2017 तक कुल 7 चरणों में संपन्न हुए थे। इन चुनावों में लगभग 61% मतदान हुआ था। इस चुनाव में 2 दशक बाद वापसी करते हुए भाजपा ने 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया था। वहीं सत्तारूढ़ सपा गठबन्धन को 54 सीटें और बसपा को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा। अगले साल मार्च से पहले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 होना है।
चुनाव के बीच चर्चा में है किसान आंदोलन :
केंद्र सरकार के तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान संघों ने शुक्रवार को घोषणा की है कि वे अपने आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर 26 जून को देशभर में राजभवनों पर भी धरना देने वाले हैं। संयुक्त किसान मोर्चा ने पत्रकारों से बात कर कहा है कि 26 जून को अपने विरोध प्रदर्शन के दौरान वे काले झंडे दिखाएंगे और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी ज्ञापन भेजेंगे।
संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख नेता श्री इंद्रजीत सिंह ने बताया है कि इस दिन को ‘‘खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस’’ के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन हम राजभवनों पर काले झंडे दिखायेंगे और प्रत्येक राज्य के राज्यपाल के माध्यम से हम राष्ट्रपति को ज्ञापन देकर विरोध दर्ज कराएंगे। केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 26 जून को हमारा आंदोलन को सात महीने पूरे हो रहे हैं।