कलयुग में सात चीजों की दुर्गति
झारखंड के हरिहरगंज स्थित कोशडिहरा में चल रहे त्रिदिवसीय प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ में आयोजित धर्मसत्र के दूसरे दिन बोलते हुए श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु ने कहा कि पृथ्वी एक अद्भुत आवास है, जिसका सम्मान हम नहीं कर रहे हैं। सात तत्व इस धरती की जीवनीय शक्ति को संतुलित बनाए रखते हैं और कलियुग के प्रभाव से इन सातों को बहुत दुर्गति का सामना करना पड़ता है।
गोभिर्विप्रैश्च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः।
अलुब्धैर्दानशीलैश्च सप्तैते धार्यते मही॥
यह पृथ्वी गौ, तपस्वी ब्राह्मण, वेदादि धर्मशास्त्र, सती स्त्री, सत्यवादी, निर्लोभी एवं उदार व्यक्तियों की उपस्थिति और सम्मान से ही अपनी जीवनीय शक्ति से युक्त होती है। कलियुग का प्रथम कार्य इन्हीं सातों के सम्मान और अस्तित्व को नष्ट करना है।
निःस्वार्थ कर्मयोग से परम् कल्याण की प्राप्ति
श्रीभागवतानंद गुरु ने अपने धर्मोपदेश में बृहद्धर्मोपपुराण एवं महाभारत के कथानकों का उदाहरण देते हुए सती अनुसूया, सती शांडिलिनी, ऋषि जाबालि, ऋषि कौशिक, धर्मव्याध एवं भक्त पुण्डरीक आदि के जीवन का वर्णन करते हुए समाज में सती स्त्री, ब्राह्मण, गौ तथा वर्णाश्रम के अनुसार निःस्वार्थ कर्मयोग का आश्रय लेकर कर्म करने वाले व्यक्तियों के महत्व का उल्लेख करते हुए कल्याण को प्राप्त करने के मार्ग के विषय में अवगत कराया।
ग्रन्थों में सभी व्यवस्थाएं
उन्होंने आगे यह कहा कि हमारे सभी धर्मग्रंथों में वास्तविक इतिहास, कल्याणप्रद विज्ञान और अद्भुत सामाजिक व्यवस्था आदि भौतिक विषयों के साथ साथ अपने उद्धार हेतु पारमार्थिक तपोमय मोक्षमार्ग का भी प्रदर्शन किया गया है। हमारे यहां धर्म किसी काल्पनिक धारणा या अंधविश्वास का नहीं, एक सम्पूर्ण अस्तित्व का नाम है, जिससे हमारी संस्कृति, अर्थव्यवस्था, विज्ञान, युद्ध, शिक्षा, तकनीक, चिकित्सा, सत्ता, कला, परिवहन, स्वच्छता, उदारता, मानवाधिकार, नारी उत्थान, सब कुछ संलग्न है।
ग्रन्थ कालातीत
श्रीभागवतानंद गुरु ने उपस्थित जनसमूह के समक्ष यह बात भी कही कि भारत के इतिहास की महानता, ग्रंथों के पालन से थी, और इसके भविष्य की महानता भी ग्रंथों के पालन से ही सम्भव है क्योंकि हमारा इतिहास भी किसी काल में किसी का भविष्य था। हमारे ग्रंथ कालातीत हैं, धर्म और धर्मग्रंथों की कूटस्थता उनके प्रभाव को सार्वकालिक बनाती है। अतएव हमें उनके आश्रय से ही कल्याण की बात करनी चाहिए।
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