दो बिल्लियो की लड़ाई में बंदर रोटी खा जाता है। यह कहावत ही चरितार्थ हो रही है जेपी के 32 हजार निवेशको पर, जिनके बीच गुटबाजी के चलत्ते आपस में फूट पड़ गई है। आज दोनों गुटो ने अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाए। जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) और जेएएल गौर्स के प्रमोटरों के खिलाफ सेक्टर-27 स्थित फार्चून होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि जेपी के 32 हजार निवेशक में महज सात हजार को ही आशियाना मिल सका है। 25 हजार अब भी आशियाने की आस में इधर-उधर भटक रहे हैं। यह जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) व जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड (जेआइएल) की मिली भगत का नतीजा है। सेक्टर-128 में एक दूसरी प्रेसवार्ता के बाद निवेशकों ने बोलीदाताओं द्वारा सम्पत्ति के अवमूल्यन को गलत बताते हुए सवाल उठाए।
सेक्टर-27 स्थित फार्चून होटल में निवेशक ने संवाददाताओं को बताया कि जेपी अपने को बढ़ाने के लिए सेल (फर्जी) कंपनियों का सहरा लेता आ रहा है। जिसमें एक कंपनी ऑफर देती है बुकिंग होने के बाद इसी ग्रुप की दूसरी कंपनी जिसे प्रमोटर या डेवलपर का नाम देकर पैसे उसके खाते में जमा कराए जाते हैं। फिर पैसे को डायवर्ट कर अन्य कार्यो में लगाया जाता है। यमुना एक्सप्रेस वे बनाने में भी ऐसा ही हुआ।
उन्होंने बताया कि इस एक्सप्रेस-वे को बनाने में अन्य एक्सप्रेस-वे की तुलना में 4,384 करोड़ रुपये अधिक खर्च किए गए। इसे उजागर करने की खरीददारों ने मांग की। घर खरीदने वालों ने मांग की कि जेएएल को जेआइएल पर फिर से नियंत्रण नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि जेएएल पर पहले से ही कई बैंकों के 37,000 करोड़ रुपये का बहुत बड़ा कर्ज है। जेएएल कई ऋणों का डिफॉल्टर घोषित किया जा चुका है। दिवालिया होने की कगार पर है।
नोएडा के सेक्टर-128 में एक दूसरी प्रेसवार्ता के बाद निवेशकों ने बोली दाताओं द्वारा सम्पत्ति के अवमूल्यन को गलत बताते हुए सवाल उठाए। टाउनशिप प्रॉपर्टी ऑनर्स वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष ने कहा कि इनसॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्टसी कोड (आईबीसी) जो मुख्य रूप से ओद्यौगिक कंपनियों की परेशानी को दूर करने के लिए बनाया गया था, रियल एस्टेट कंपनियों पर लागू नहीं होता है। हम आरबीसी के तहत जेपी इन्फ्राटेक लिमिटेड के विलय का विरोध करते हैं।
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