मेरठ जिले में आए दिन हत्या, लूट, डकैती और छिनैती की वारदातों को अंजाम दे बदमाश पुलिस के गिरते इस्तकबाल की पोल खोल रहे हैं। पुलिस की सरकारी राइफलें भले ही बदमाशों से लोहा लेने में नाकाम साबित हो रही हों। मगर पुलिस की लाठी में अभी दम बाकी है। आए दिन मजलूमों और मासूमों पर बरसने वाली लाठियों ने अब थर्ड जेंडर का फर्क समझना भी बंद कर दिया है। इसका एक उदाहरण सोमवार को उस समय लालकुर्ती थाने में देखने को मिला जब पुलिसकर्मियों ने थाने से लेकर सड़क तक किन्नरों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा।
दरअसल, लालकुर्ती निवासी किन्नरों के दो पक्षों के बीच पिछले काफी समय से सीमा विवाद चला आ रहा है। बताया जाता है कि आज सुबह किन्नरों के एक पक्ष ने फौव्वारा चौक स्थित एक घर से शादी की बधाई वसूल ली। इस बात की जानकारी मिलने पर किन्नरों के दूसरे पक्ष ने मौके पर पहुंचकर हंगामा कर दिया। दोनों पक्षों के आपस में भिड़ने की सूचना पर मौके पर पहुंची पुलिस दोनों पक्षों के किन्नरों को उठाकर थाने ले आई। जिसके बाद किन्नरों ने थाने में ताली पीट-पीटकर हंगामा शुरू कर दिया। जिसके बाद गुस्से में आए थाने के ‘जांबाज’ पुलिसकर्मी किन्नरों पर कहर बनकर टूट पड़े। पुलिसकर्मियों ने किन्नरों पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसाते हुए उन्हें थाने से लेकर सड़क तक दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। किन्नरों को पुलिस द्वारा लाठी फटकारे जाने का इल्म भी नहीं था। घटना के चलते हंगामे पर उतारू किन्नरों में हड़कंप मच गया और भगदड़ में कई किन्नर चोटिल भी हो गए। बाद में जैसे-तैसे किन्नर पुलिस से माफी मांग कर पीछा छुड़ाते हुए थाने से नौ दो ग्यारह हो गए। मगर बड़ा सवाल यह है कि यदि किन्नर हंगामा कर रहे थे तो पुलिस उन्हें कानून के तहत हवालात में भी डाल सकती थी। मगर, किन्नरों पर बर्बरता पूर्वक लाठियां फटकारना खाकी की बेलगामी साबित करने के लिए काफी है।