नई दिल्ली। अड़ंगा डालने वाले लोगों को राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गुजरात केडर के आईपीएस राकेश अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ दायर याचिका पर ये दलील बुधवार को केंद्र सरकार की ओर से दी गई।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये जंतर मंतर या रामलीला मैदान नहीं है।
खंडपीठ अस्थाना को चुनौती देने वाली सद्रे आलम की जनहित याचिका और एनजीओ सीपीआईएल की हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई कर रही है। सीपीआईएल ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के जरिये अस्थाना की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दे रखी है। मेहता ने कहा कि दोनों का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है। अड़ंगा डालने वाले लोग अदालत नहीं आ सकते।
खंडपीठ ने याचिका पर केंद्र सरकार और राकेश अस्थाना को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई आठ सितंबर के लिए तय की है। पीठ के समक्ष तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका एनजीओ की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की कॉपी पेस्ट है।
मेहता ने कहा ऐसा लगता है कि आलम ने याचिका कॉपी की है और जिस खतरनाक रास्ते पर प्रशांत भूषण चल रहे हैं, उसका अनुसरण किया है। उन्हें रोका जाना चाहिए। उन्होंने याचिकाकर्ता और सरकारी नियुक्तियों में अड़ंगा डालने वालों के प्रति संदेह व्यक्त किया। याची की जांच होनी चाहिए। ये गंभीर मामला है। हूबहू एक जैसी टाइपिंग की गलती होने का संयोग संभव नहीं है।
उन्होंने याचिका के तथ्यों पर जवाब देने का समय मांगते हुए कहा कि कोई भी आदेश देने से पहले प्रभावित अधिकारी को भी सुना जाना चाहिए। वहीं एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि आलम की याचिका बदनियती से प्रेरित है और सुप्रीम कोर्ट में लंबित उनकी याचिका की कॉपी है।
भूषण ने कहा कि वह यहां दलीलें पेश करना नहीं चाहते क्योंकि उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। वहीं याची आलम की ओर से अधिवक्ता बीएस बग्गा ने कहा कि पेश याचिका कॉपी पेस्ट नहीं है।