नोएडा। नोएडा प्राधिकरण ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विभिन्न रियल एस्टेट कंपनियों को लीज पर दी गई भूमि के लिए बकायों पर आठ फीसद की ब्याज दर सीमा तय करने संबंधी शीर्ष अदालत के पिछले साल के आदेश से उसे काफी नुकसान हो रहा है और उसका कामकाज लगभग ठप हो गया है। नोएडा प्राधिकरण ने आरोप लगाया कि विभिन्न बिल्डरों ने अदालत से तथ्यों को छिपा लिया, जिसकी वजह से अदालत ने पिछले साल 10 जून को नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र की रियल एस्टेट कंपनियों के पक्ष में आदेश जारी कर दिया।
नोएडा अथारिटी की ओर से पेश अधिवक्ता रविंद्र कुमार ने जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ को बताया कि अदालत ने 10 जून, 2020 के अपने आदेश के जरिये 2010 के बाद बिल्डरों के साथ अनुबंधों के तहत ली जा रही ब्याज दरों में कटौती कर दी थी। इन अनुबंधों के तहत बड़े पैमाने पर राज्य की जमीनों को बिल्डरों को उपलब्ध कराया गया है।
अधिवक्ता रविंद्र कुमार ने कहा, यह कहा जा रहा है कि आदेश पारित होने से पहले नोएडा ने इस मामले में अपनी दलीलें रखी थीं, लेकिन वास्तविकता यह है कि जिस बिल्डर (ऐस ग्रुप) की याचिका पर आदेश जारी किया गया था, उसने निचले स्तर के अधिकारियों से मिलीभगत कर ली थी। नोएडा प्राधिकरण को कोई नोटिस जारी नहीं किया था, जिसकी वजह से याचिका पर समुचित जवाब दाखिल नहीं किया जा सका था।
रविंद्र कुमार ने कहा कि आवेदक का सम्मानपूर्वक कहना है कि इस अदालत के आदेश ऐसी परिस्थितियों में जारी किए गए थे कि आवेदक दूरगामी वित्तीय प्रभावों के बारे में अपने बचाव में तथ्य रखने में समर्थ नहीं था। लिहाजा न्याय के हित में आदेशों को वापस लिया जाए और मामले की नए सिरे से सुनवाई की जाए।