पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (Delhi AIIMS) में मौत हो गई है। वे वेंटिलेटर पर थे। उनके निधन पर बिहार में शोक की लहर है। उनके निधन पर शोक संवेदानाओं का तांता लगा हुआ है। मौत के कुछ दिनों पहले ही उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से अपना पुराना नाता तोड़ लिया था। उन्होंने आइसीयू से ही आरजेडी इस्तीफा देने का अपना पत्र जारी कर बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सियासी हड़कम्प मचा दिया था। उनका पार्थिव शरीर देर शाम पटना लाश जाएगा। उनका अंतिम संस्कार वैशाली में सोमवार को किया जाएगा।
रघुवंश प्रसाद सिंह का 74 वर्ष की उम्र में निधन
पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का रविवार को 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। दो दिनों पहले उनकी हालत बिगड़ गई थी। उन्होंने दिल्ली के एम्स के आइसीयू वार्ड में रविवार की सुबह अंतिम सांस ली। सांस लेने में परेशानी होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। इसके पहले कोरोना पॉजिटिव होने के बाद उनका पटना के एम्स में इलाज किया गया था। कुछ ठीक होने के बाद उन्हें पोस्ट कोविड मर्ज के इलाज के लिए दिल्ली एम्स ले जाया गया था।
जीवन के अंतिम दौर में आरजेडी से मोहभंग
रघुवंश पसाद सिंह पटना एम्स में इलाज के दौरान ही आरजेडी के उपाध्यक्ष सहित पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफा दे दिया था। उन्हें मनाने की कोशिशें चल ही रहीं थीं कि वे फिर बीमार पड़ गए। इस बार दिल्ली एम्स में इलाज के दौरान उन्होंने 10 सितंबर को पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। रघुवंश के इस्तीफे को पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने स्वीकार नहीं किया। वे पार्टी में अपने विरोधी रामा सिंह (Rama Singh) की एंट्री की कोशिशों से नाराज चल रहे थे।
1977 से लगातार सियासत में रहे रघुवंश
रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1977 से लगातार सियासत में रहे। वे लालू प्रसाद यादव के करीबी व उनके संकटमोचक माने जाते रहे। पार्टी में उन्हें दूसरा लालू भी माना जाता था। वे लगातार चार बार वैशाली से सांसद रहे। यूपीए की सरकार में मंत्री भी रहे। विपक्ष में रहते हुए वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को घेरने में सबसे आगे रहे।
शोक संवेदनाओं का सिलसिला जारी
रंधुवश प्रसाद सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित तामम बड़े नेताओं ने शोक प्रकट किया है। जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने उनके निधन को राजनीति की अपूरणीय क्षति बताया। बीजेपी नेता प्रेमरंजन पटेल ने उन्हें बेदाग छवि का बेबाक नेता बताया। उन्होंने कहा कि आरजेडी ने उन्हें जो पीड़ा दी, उससे उन्हें बड़ा कष्ट दिया। रामा सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनके सामने वैशाली में आपराधिक छवि के व्यक्ति को खड़ा करने की कोशिश की गई, जिससे उन्हें बहुत पीड़ा हुई।
कर्पूरी ठाकुर के दौर से था लालू एवं रघुवंश का साथ
रघुवंश प्रसाद सिंह का लालू के साथ संबंध कर्पूरी ठाकुर के दौर से था। रघुवंश प्रसाद सिंह ही कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू को आगे बढ़ाने में मदद की थी। 1988 में लालू के नेता प्रतिपक्ष बनने में भी साथ दिया था। 1997 में लालू ने जब जनता दल से अलग हटकर आरजेडी बनाया, जब रघुवंश उसके संस्थापक सदस्यों में से थे। आरजेडी का संविधान भी लालू ने उनकी सहमति से ही बनाया था।
ठेठ गंवई अंदाज में हमेशा लालू की भाषा बोलते थे रघुवंश
रघुवंश ठेठ गंवई अंदाज में हमेशा लालू के मन की भाषा ही बोलते आए हैं। माना जाता था कि लालू जो सोचते हैं, वहीं रघुवंश बोलते हैं। करीब पांच दशकों की राजनीति में सिर्फ एक बार को छोड़कर दोनों की विचारधारा में कभी मतभेद नहीं दिखा।
सवर्ण आरक्षण पर पहली बार हुए थे नाराज
करीब दो साल पहले जब केंद्र ने गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की थी तो राजद ने उसका विरोध किया था। राज्यसभा में राजद सांसद मनोज झा ने झुनझुना बजाकर प्रस्ताव का विरोध किया था, जो रघुवंश को रास नहीं आया। लालू तब जेल में थे। रघुवंश ने मीडिया में अपनी व्यथा साझा करते हुए राजद को रास्ते पर लाने की कोशिश की थी। किंतु तब उनकी नहीं सुनी गई थी। हालांकि बाद में राजद ने इस मुद्दे पर मौन साध लिया।