अयोध्या: अयोध्या कि मुराद पूरी होने जा रही है। संतों के साथ ही लोगों में ख़ुशी और उत्साह है। अयोध्या को सजाया-संवारा जा रहा है। 5 अगस्त को राम मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों मंदिर की आधारशिला रखी जाने वाली है। प्रोग्राम फिक्स हैं। आगंतुकों की लिस्ट तैयार हो गई है।
कोरोना काल में इस इवेंट को तकनीक के माध्यम से बड़ा बनाने की कोशिशें जारी हैं। देश-विदेश और पूरी मीडिया में अयोध्या कि धूम है। लेकिन इस अयोध्या को अपना नाम हासिल करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है। इसकी कहानी बनती बिगड़ती रही है।
मंदिर आंदोलन से ही अयोध्या सुर्खियों में रहा लेकिन दूसरे प्रदेशों से आने वाले लोगों को बताना पड़ता था कि यहाँ पर पहुँचें कैसे। लगातार यह मांग की जा रही थी कि फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या किया जाए पर इसे तवज्जो नहीं मिल पा रही थी। फैजाबाद से सांसद रहे विनय कटियार और वर्तमान सांसद लल्लू सिंह भी इस बारे में आवाज़ उठा चुके थे।
2017 उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री। मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे योगी ने इसे गंभीरता से लिया और 6 नवंबर 2018 को फैजाबाद जिले का नाम अयोध्या कर दिया। उन्होंने संतों की यह शिकायत दूर कर दी, जिसमें वह कहते थे कि जिस नगरी में राम का जन्म हुआ अगर हम उसे पहचान तक नहीं दे सकते तो धिक्कार है।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार ई. पू, 2200 के आसपास अयोध्या कि स्थापना हुई थी। महाकाव्य रामायण के अनुसार राम का जन्म अयोध्या में हुआ था, इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ उनके पिता थे जो 63वें शासक थे। जब भी प्राचीन भारत के तीर्थों का उल्लेख होता है तो अयोध्या का नाम ज़रूर आता है। ‘अयोध्या मथुरा माया काशि कांची ह्य्वान्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका।’ बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 सालों तक निवास किया था। रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही रहा।
भारत में बाबर के शासन के बाद से धर्मनगरी अयोध्या विवादों में आ गई थी। इस विवाद को 500 साल हो चुके हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाक़ी ने यहाँ मंदिर को तोड़कर यहाँ मस्जिद बनवाई थी, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।
सरयू का किनारा और लखनऊ से अयोध्या कि करीबी इसे ख़ास तवज्जो दिलाती रही। इस शहर की नींव उस समय रखी गई जब नवाबों का शासन उभार पर था। इस शहर की स्थापना बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान ने की। लेकिन दूसरे नवाब सआदत खान ने फैजाबाद की नींव रखी। सआदत खान के उत्तराधिकारी शुजाउद्दौला ने फैजाबाद को अवध की राजधानी बनाया।
नवाब सफदरजंग ने बनाया सैन्य मुख्यालय
1739-54 में नवाब सफदरजंग ने इसे अपना सैन्य मुख्यालय बनाया। इसके बाद आए शुजाउद्दौला ने फैजाबाद में किले का निर्माण कराया। इस दौरान पूरे भारत में फैजाबाद को जाना जाता था। लखनऊ से यह केवल 130 किमी दूर था और बंगाल से आते समय यह रास्ते में पड़ता था। फैजाबाद को कभी छोटा कोलकाता भी कहा जाता था।
नवाब शुजाउद्दौला के समय चरमोत्कर्ष पर
शुजाउद्दौला का शासनकाल फैजाबाद के लिए स्वर्णकाल कहा जा सकता है। उस दौरान फैजाबाद ने जो समृद्धि हासिल की वैसी दोबारा नहीं कर सका। उस दौर में यहाँ कई इमारतों का निर्माण हुआ जिनकी निशानियाँ आज भी मौजूद हैं। शुजाउद्दौला कि पत्नी बहू बेगम मोती महल में रहती थीं। यहाँ से पूरे फैजाबाद का नजारा दिखाई देता था। 1775 में नवाब असफउद्दौला ने अपनी राजधानी फैजाबाद से बदलकर लखनऊ कर ली, इसके बाद यह अपनी रंगत खोने लगा।
राम मंदिर आंदोलन से मिली पहचान
राम मंदिर आंदोलन ने अयोध्या को विश्व पटल पर ला दिया। समय ऐसा भी आया जो अयोध्या के आगे फैजाबाद फीका पड़ गया। राजनीतिक समीकरण ऐसे बने कि किसी भी सरकार ने अयोध्या के विकास पर ध्यान नहीं दिया। अयोध्या कि उपेक्षा होती रही, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर के सम्बंध में दिए गए निर्णय ने इसका स्वर्णकाल लौटा दिया है। सरकार ने इसके सौंदर्यीकरण के लिए बड़ी घोषणाएँ की हैं। यहाँ एयरपोर्ट भी बनाया जा रहा है।