नीरज शर्मा की रिपोर्ट
बुलंदशहर : भारत की 40% आबादी ऑस्टियोआर्थराइटिस की बीमारी का शिकार बनी हुई है। ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित 25 फीसदी लोग दिनचर्या के काम करने में सक्षम नहीं रहते हैं। हालांकि, टोटल नी रिप्लेसमेंट के क्षेत्र में प्रगति के साथ मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया की मदद से न सिर्फ सही समय पर निदान संभव है, बल्कि सफल इलाज भी संभव है।
जॉइंट रेजिस्ट्री (आईएसएचकेएस) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5 सालों में भारत में 35,000 से अधिक टोटल नी रिप्लेसमेंट (टीकेआर) और 3500 से अधिक टोटल हिप रिप्लेसमेंट (टीएचआर) सर्जरी की गईं। आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि, ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित 60 साल से अधिक उम्र की 60% महिलाएं टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी से गुजर चुकी हैं।
नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल में हड्डी और जोड़ सर्जरी/ऑर्थोपेडिक्स के निदेशक व हेड, डॉक्टर अतुल मिश्रा ने बताया कि, “ऑस्टियोआर्थराइटिस किसी भी जोड़े को प्रभावित कर सकता है, लेकिन आमतौर पर यह हाथों, घुटनों, कूल्हों और रीढ़ के जोड़ों को प्रभावित करता है। इस बीमारी में जोड़ों में दर्द होता है, जो समय के साथ गंभीर होता जाता है। आज के दौर में यह समस्या बहुत ही आम हो गई है, जो मरीज के जीवन की गुणवत्ता को खराब करती है। सामान्य तौर पर ये मोटापा, एक्सरसाइज में कमी, चोट आदि से संबंधित है। ऑस्टियोआर्थराइटिस के आम लक्षणों में जोड़ों में दर्द, जकड़न, झनझनाहट, कम लचीलापन, हड्डियों में घिसाव व टूटने का एहसास, सूजन आदि शामिल हैं। बीमारी के सफल इलाज के लिए सही समय पर रोकथाम करना आवश्यक है।”
दरअसल, बीमारी के शुरुआती चरणों में निदान के साथ, मरीजों को किसी खास इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है। इस दौरान समस्या को केवल एक्सरसाइज और फिजिकल थेरेपी से ठीक किया जा सकता है। यदि इससे भी कोई लाभ नहीं मिलता है तो मरीज को दवाइयों यानी कि मेडिकेशन की सलाह दी जाती है। यदि समस्या ज्यादा है तो सप्लीमेंट्स के अलावा ओटीसी पेन किलर दवाइयों और पेन रिलीफ थेरेपी की सलाह दी जा सकती है। सामान्य तौर पर तीसरे चरण तक केवल मेडिकेशन से बीमारी को ठीक किया जा सकता है। लेकिन यदि मरीज बीमारी के चौथे चरण में है तो सर्जरी करना जरूरी हो जाता है।
डॉक्टर अतुल मिश्रा ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि, “ऑस्टियोआर्थराइटिस के शुरुआती तीन चरणों तक बिना सर्जरी के इलाज संभव है लेकिन चौथे चरण में सर्जरी के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाता है। टोटल नी रिप्लेसमेंट के क्षेत्र में प्रगति के साथ मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया की मदद से न सिर्फ सही समय पर निदान संभव है, बल्कि सफल इलाज भी संभव है। इसमें मरीज को न के बराबर दर्द होता है, जल्दी रिकवर करता है और अस्पताल से जल्दी डिस्चार्ज कर दिया जाता है। वहीं पार्शियल नी रिप्लेसमेंट जैसी नई तकनीकें और एलॉय इंप्लान्ट पुराने की तुलना में बहुत बेहतर हो गए हैं। ये इंप्लान्ट लंबे समय तक चलते हैं, जिससे मरीजों को इंप्लान्ट बार-बार बदलवाना नहीं पड़ता है। पहले नी रिप्लेसमेंट बुजुर्ग मरीजों की जरूरत के हिसाब से उपलब्ध होते थे, लेकिन आज टेक्नोलॉजी में प्रगति के साथ युवा भी इस तकनीक का लाभ उठा सकते हैं। इसमें एक छोटे से चीरे के साथ काम बन जाता है, इसलिए मरीज सर्जरी के बाद जल्दी रिकवर करते हैं और जल्द ही अपने जीवन को सामान्यरूप से शुरू कर पाते हैं। मरीजों को ऐसा बिल्कुल महसूस नहीं होता है कि उनके घुटने को इंप्लान्ट के साथ बदला गया है।”