नई दिल्ली ।अभिनेता राहुल बोस सख्त निजता के साथ एक आसान जीवन जीने को लेकर बहुत खुश हैं। उनका कहना है कि उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है और उन्हें कहीं भी पहुंचने की जल्दी नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या महामारी ने उन्हें अपने जीवन के लक्ष्यों को लेकर पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर किया है, इस पर राहुल ने बताया, “बिल्कुल नहीं। मैंने कई साल पहले अपने जीवन को लेकर पुनर्मूल्यांकन किया था। मैं समझ गया हूं कि मेरी खुशी कहां है।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं अपने दोस्त ध्यान से चुनता हूं। मैं कुछ मामलों के बारे में निजता की बहुत मजबूत भावना के साथ एक आजाद, आसान जीवन जी रहा हूं। मैं खुद को लोगों पर नहीं थोपता। वैसे ही मुझे उम्मीद है कि लोग खुद को मुझ पर नहीं थोपेंगे। इसीलिए ब्रह्मांड के साथ मेरा बहुत सामंजस्यपूर्ण तालमेल बना हुआ है।”
अभिनेता ने आगे कहा, “मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। मैं कहीं नहीं जाना चाहता, या कुछ भी नहीं बनना चाहता। मेरी बहुत इच्छाएं हैं। महत्वाकांक्षा और इच्छा के बीच एक बड़ा अंतर है। इसलिए मेरे लिए, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से, इसने (महामारी) मुझे कुछ भी नहीं सिखाया है, उतना तो मैं पहले से ही अपने और दुनिया के बारे में जानता हूं। मैं उन सभी भावनात्मक रूप से जुड़े मांगों के साथ बहुत सहज रहा हूं।”
हालांकि, राहुल को एक बात परेशान करती है।
राहुल ने कहा, “सिर्फ एक एडजस्टमेंट देखना बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है, वह है घर जाने की जुगत में लगे भारतीयों का दर्द देखना। लाखों और करोड़ों भारतीयों की घर जाने की कोशिश करने की गंभीर पीड़ा। और ये पीड़ा कहीं भी महामारी से संबंधित नहीं है। इसे पूरी तरह से टाला जा सकता था। यह चीज सबसे अधिक चुनौतिपूर्ण रही।”