आजमगढ़ में जिले के जीयनपुर थाना क्षेत्र चुनगा पार गांव का मसरूद्दीन चार गांव का पिछले चालीस साल से रक्षक बना हुआ है। अपने पिता से विरासत में मिली इस पहरेदारी को वह बख्ूाबी अंजाम देते हुए साढ़े पांच हजार अन्नदाताओं की तीन सौ एकड़ फसल को मवेशियों से बचाने में दिन रात मुस्तैद हैं। गांव के लोग अपने इस रक्षक को ‘शिकारी’ के नाम से पुकारते हैं।
60 वर्षीय मसरू द्दीन के पिता ने मिर्जापुर ब्लाक के दमदियावन, दुबौलिया,मोहनाठ, परवेजाबाद गांव मेंें जंगली जानवरों से किसानो की फसल बचाने में अपने जीवन में चालीस वर्ष खपा दिए। अपने पिता के बाद अब पिछले चालीस वर्षो से ही अपने पिता की इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। ‘शिकारी’ को उसकी इस सेवा के बदले ग्रामीण उसे एक बिगहे पर हर फ़सल पर पांच किलो अनाज देते हैं। साथ में हर घर से पचास रुपया भी उसे मिल जाता है।
गजभरू से ‘शिकारी’ करता है रक्षा
मसरूद्दीन तीन किलोमीटर की परिधि में फैले इन चार गांव की रखवाली एक विशेष हथियार गजभरू से करता है। बंदूक की आकृति के इस एक नाल हथियार में बारूद भरकर तेज आवाज पैदा कर जानवरों को भगाने का काम किया जाता है। हर घर से 50 रुपया नकद मिलने वाला नकद पैसे से रोजाना की जरूरत व गजभरू के लिए बारूद की खरीदारी कर लेता है।
मसरूद्दीन कहते हैं कि चार गाव की ज़िम्मेदारी के लिए मै प्रतिदिन भोर से शाम सात बजेतक घूमता रहता हूं। अपनी गजभरू में बारूद डाल कर एक पतली सरिया से ठंूस कर भरकर इसकी आवाज़ से जानवर भाग जाते हैं। मसरू ने बताया कि मेरे पिता के निधन के बाद 1988 में इसका लाइसेंस मुझे विरासत में मिला है तब से आज तक मैं इस काम की ज़िम्मेदारी निभा रहा हूं।