ग्रेटर नोएडा : राजनीति में माफिया से माननीय बनने का खेल अब पूर्वांचल से धीरे-धीरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरफ बढ़ रहा है। अक्सर देखा गया है कि कानून की निगाह में गुनहगारों को जनता सिर-आंखों पर बिठा लेती है। खासकर पिछड़े इलाकों से शुरू हुआ यह सिलसिला इस कदर हावी हुआ कि चुनाव आयोग को वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान स्पष्ट रूप से कहना पड़ा कि आपराधिक छवि के नेता को टिकट देने का पार्टी को कारण बताना होगा।
अगर बात गौतमबुद्धनगर की करें तो जिले में कई आपराधिक छवि के लोग टिकट लेने की कतार में खड़े हो गए है। अपने करीबियों के कंधे का इस्तेमाल कर राजनीति का चोला ओढ़ना चाहते है। दादरी व जेवर विधानसभा से टिकट पाने का हरसंभव प्रयास कर रहे है। हालांकि 2017 में मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने पिछले पांच साल में माफिया के खि4लाफ सख्त कार्रवाई की है। फिर चाहे वह मुख्तार अंसारी हो या फिर अतीक अहमद हो।
माफिया से माननीय बने नेताओं की योगी सरकार ने कमर तो तोड़ दी है, लेकिन इस बार वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी पेश करने वाले माफिया स्थिति से वाकिफ होते हुए भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। बात किसी एक पार्टी की नहीं है, छोटा चुनाव जीतकर विधायक बनने का सपना देख रहे एक नेता भी आपराधिक छवि के माने जाते है। उनका रिश्तेदार बीते दिनों रंगदारी के मामले में जेल गया था। नेता जी प्रयास कर रहे है कि उनको जेवर विधानसभा से टिकट मिल जाए। जेवर से एक अन्य आपराधिक छवि के नेताजी टिकट की जुगत में हैं। दादरी से भी एक टिकट पाने के लिए मेहनत कर रहा है। बात यदि नोएडा विधानसभा की करें तो हर पार्टी साफ छवि के नेता को टिकट देना चाहती है। बाजी किसके हाथ लगेगी यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
सजा न होती, तो चुनाव मैदान में होता अनिल दुजाना:
बात वर्ष 2016 की करें तो कुख्यात अनिल दुजाना को पौने चार साल की सजा हुई थी। उस दौरान अनिल जेल में बंद रहकर जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीता था। सजा होने की वजह से वह 2017 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाया था। सूत्रों ने दावा किया कि यदि उस दौरान अनिल को सजा नहीं होती तो वह विधानसभा चुनाव लड़ता।