हमारे देश में छुआछूत और जाति व्यवस्था का दंश केवल जीते-जी नही, मरने के बाद भी झेलना होता है। बुलंदशहर के एक गांव में तहसील के अफसरों ने श्मशान को दो हिस्सों में बांट दिया है…एक तरफ दलित और दूसरी तरफ ऊंची जाति के लोग। बुलंदशहर से हरिओम मीणा की रिपोर्ट
शमशान के बीचोबीच यह तारबंदी ना तो जानवरों को रोकने के लिए लगाई गई आड़ है और ना किसी सरहद को बांटने की दीवार। बुलंदशहर के बनैल गांव के श्मशान में इलाके के लेखपाल और तहसील के अफसरों ने बिरादरी के हिसाब से हिस्सा बांट दिया है। शमशान के एक हिस्से में अछूत यानी दलित बिरादरी के लोग जलाए जाएंगे और दूसरे हिस्से में गांव के बाकी लोग… जो सवर्ण और पिछड़ी जाति के हैं। अफसरों के दिमाग की यह सनक क्या है.. यह तो नहीं मालूम लेकिन सबका साथ सबका विकास करने वाली सरकार के राज में यह मानसिकता सवालों के घेरे में खड़ी है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि बुलंदशहर के इस बनेल गांव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक रज्जू भैया का जन्म हुआ था। रज्जू भैया के जीवन के सिद्धांतों का असर इस गांव की नई पीढ़ी पर भी दिखाई देता है लेकिन इस गांव में नौकरी करने वाले सरकारी अफसरों और मुलाजिमों यह बात समझ नहीं आई कि 21वीं सदी में छुआछूत और जाति व्यवस्था से परे होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा भी है। बात अगर सामाजिक ताने-बाने की भी करें तब भी श्मशान में बटवारा किसी भी सूरत में जायज नहीं कहा जा सकता। तहसील के अफसरों की कारगुजारी की जांच कराने की मांग भी अब उठने लगी है।
तहसील कर्मचारियों और अफसरों की इस हरकत पर गांव के प्रधान भी शर्मसार हैं। वह कैमरे पर नहीं बोलना चाहते। जांच शुरू हुई है और मुमकिन है कि तारबंदी खत्म हो जाए लेकिन इस तारबंदी ने इस गांव के दलित समाज के मन में जो रेखा खींची है वह शायद वर्षों तक यूं ही अमिट रहे।
रिपोर्टर – नीरज शर्मा