दिल्ली। संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि नए कृषि कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव किसानों को मंजूर नहीं है और वे तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करवाना चाहते हैं। हालांकि मोर्चा की ओर से सरकार को लिखे पत्र में कहा गया है कि सरकार अगर साफ नीयत से बातचीत को आगे बढ़ाना चाहे तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले करीब 40 किसान संगठनों के नेता देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान की अगुवाई कर रहे हैं। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल द्वारा किसान 20 दिसंबर को लिखे पत्र का जवाब देते हुए मोर्चा की तरफ से क्रांतिकारी किसान यूनियन पंजाब के डॉ. दर्शनपाल ने कहा, “आपने 9 दिसंबर 2020 को जो लिखित प्रस्ताव भेजे थे वो 5 दिसंबर की वार्ता में दिए गए उन मौखिक प्रस्तावों का दोहराव भर है, जिन्हें हम पहले ही खारिज कर चुके हैं।”
हालांकि उन्होंने आगे पत्र में यह भी कहा है कि प्रदर्शनकारी किसान और किसान संगठन सरकार से वार्ता के लिए तैयार है और इंतजार कर रहे हैं कि सरकार कब खुले मन, खुले दिमाग और साफ नीयत से इस वार्ता की आगे बढ़ाए।
उन्होंने कहा, “आपसे आग्रह है कि आप निर्थक संशोधनों के खारिज प्रस्तावों को दोहराने की बजाय कोई ठोस प्रस्ताव लिखित रूप में भेजें, ताकि उसे एजेंडा बनाकर जल्द से जल्द वार्ता के सिलसिले को दोबारा शुरू किया जा सके।”
पत्र में उन्होंने सरकार पर किसानों को बदनाम करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, “हमें बहुत दुख के साथ यह भी कहना पड़ रहा है कि भारत सरकार के अन्य कई प्रयासों की तरह आपका यह पत्र भी किसान आंदोलन को नित नए तरीकों से बदनाम करने का प्रयास है। यह किसी से छुपा नहीं है कि भारत सरकार पूरे देश के किसानों के शांतिपूर्ण, जमीनी और कानून सम्मत संघर्ष को अलगाववादियों और चरमपंथियों के रूप में पेश करने, संप्रदायवादी और क्षेत्रीय रंग में रंगने और बेतुका व तर्कहीन शक्ल में चित्रित करने की कोशिश कर रही है।”
उन्होंने आगे कहा, सच यह है कि किसानों ने साफगोई से वार्ता की है, लेकिन सरकार की तरफ से इस वार्ता में तिकड़म और चालाकी का सहारा लिया गया है।
उधर, नए कृषि कानून के समर्थन में आए किसान संगठनों को फर्जी बताते हुए उन्होंने कहा, “सरकार तथाकथित किसान नेताओं और ऐसे कागजी संगठनों के साथ समानांतर वार्ता आयोजित कर इस आंदोलन को तोड़ने का निरंतर प्रयास कर रही है जिनका चल रहे आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। आप प्रदर्शनकारी किसानों से ऐसे निपट रहे हैं मानो वे भारत के संकटग्रस्त नागरिकों का समूह ना होकर सरकार के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं! सरकार का यह रवैया किसानों को अपने अस्तित्व की रक्षा की खातिर अपना विरोध प्रदर्शन तेज करने के लिए मजबूर कर रहा है।”