Home Breaking News हौसलों के आगे पस्‍त हुई हताशा और लिख दिया था नया इतिहास, तारीखें बोलती नहीं हैं पर बयां बहुत कुछ कर जाती हैं
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हौसलों के आगे पस्‍त हुई हताशा और लिख दिया था नया इतिहास, तारीखें बोलती नहीं हैं पर बयां बहुत कुछ कर जाती हैं

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अलीगढ़ : तारीखें बोलती नहीं हैं पर बयां बहुत कुछ कर जाती हैं। 22 मार्च 2020 की तारीख भी कुछ ऐसी ही थी। जनता कफ्र्यू घोषित हो चुका था। मानों लगा युद्ध का बिगुल फूंक दिया गया है। सड़कें सन्नाटे में थीं, घरों की खिड़कियां और दरवाजे बंद हो गए थे। 24 घंटे दौड़ने वाले तमाम महानगर एकाएक थम गए थे। देश सन्नाटे के आगोश में था। सहसा पक्षियों की चहचाहट सुनाई देने लगी थी। मगर, कोरोना को लेकर तमाम आशंकाएं बलवती थीं। आजादी के बाद पहली बार इतना बड़ा संकट आया था, जिसके बारे में किसी को अंदाजा नहीं थीं। ऐसा लग रहा था कि हर दरवाजे पर कोरोना वायरस दानव बनकर दस्तक दे रहा है। डर का आलम यह था कि खिड़कियों से भी लोग झांकने से डरे हुए थे। घरों में कैद रहे लोगों के लिए एक दिन मानों एक साल लगा। जरूरतों को खुद समेटकर जिले के लोगों ने साहस और अनुशासन दोनों का परिचय दिया था। एक योद्धा की तरह जिले के लोगों की जीत हुई थी। शाम पांच बजते ही शहर घंटे और शंखनाद से गूंज उठा। थाली और तालियों से लोगों ने कोरोना योद्धाओं को सलाम किया। एक सूत्र में शहर बंध चुका था। शहर जीता…फिर, मन और मस्तिक से आगे की लंबी लड़ाई के लिए तैयार हो चुके थे।

साल 2020 की शुरुआत दशहत के साथ हुई थी। हालांकि, दिसंबर 2019 को ही चीन में कोरोना नामक एक नया वायरस जन्म ले चुका था। मगर, जनवरी 2020 तक यह विश्व में पांव पसारने लगा था। जनवरी और फरवरी ऊहापोह में बीता। मगर, मार्च में संकट के बादल गहरा गए। कोरोना तेजी से फैल चुका था, इंतजाम बौने साबित हो रहे थे। अमेरिका और इटली जैसे देश भी इस वायरस के आगे हताश दिख रहे थे। ऐसे हालात में पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च 2020 को जनता कफ्र्यू घोषित कर दिया था।

शुरू हुई अग्नि परीक्षा, सभी ने कसी कमर 

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पीएम की अपील के बाद शहर के लोगों की अग्नि परीक्षा शुरू हो गई थी। खामोशों में लिपटी 22 मार्च की सुबह थी। चाय की दुकानें बंद थी, चौराहे सुकून में थे, सब्जी मंडी थम गई थी, दूध-ब्रेड आदि की दुकानें बंद थी। रास्ते सन्नाटे में खो चुके थे।  चहलकदमी से गुलजार रहने वाला नकवी पार्क शांत था। जिम रुक गए, कल-कारखानों के पहिए थम गए। बसें, आटो, रिक्शा आदि जहां थे, वहीं ठहर गए। बाहर से शहर में आने वाले लोग भी जहां थे, उन्हें वहीं रोक लिया गया। आजादी की लड़ाई लड़ी गई, 1962 का भारत-चीन युद्ध और 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी ऐसी स्थिति नहीं बनी थी। नकवी पार्क में तो यह स्थिति थी कि एक पत्ता भी गिर जाए तो आवाज हो जाता, वरना प्रतिदिन टहलने वाले लोगों के ठहाकों और शोरगुल में प्रकृति की आवाज गुम हो गई थी। असली अग्नि परीक्षा शुरू हो गई थी। घरों में दिनभर रहने के बाद भी लोगों ने धैर्य का परिचय दिया। बच्चों ने साहस का परिचय दिया तो बुजुर्गों ने भी हिम्मत से काम लिया। दिनभर घरों में रहे, अपनी जरूरतों को समेट लिया। जिनकी रोजी-रोटी प्रतिदिन कमाने पर टिकी हुई थी, उन्होंने भी धैर्य से काम लिया। हर समय गुलजार रहने वाला सेंटर प्वाइंट, मैरिस रोड, रेलवे रोड घोर संन्नाटे में डूब चुका था। वीरान सड़कें इसकी गवाह थीं।

एक सुर, एक लय में हुआ शहर 

इतिहास के पन्नों में तब यह दिन दर्ज हो गया जब शाम को ताली और थाली गूंज उठी। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण एक सूत्र में बंध चुका था। शाम पांच बजते ही लोग घरों से बाहर निकल आए। कोई ताली पीट रहा था तो कोई थाली, कोई घंटा बजाकर उत्साह बढ़ा रहा था। चेहरे पर मुस्कान थी और कोरोना वायरस से लड़ने का माद्दा भी साफ दिख रहा था। बड़े-बुजुर्ग भी बालकनी और खिड़कियों से ताली और थाली बजाते हुए नजर आए। छोटे-छोटे बच्चे अनुशासन में रहकर ताली और थाली पीट रहे थे। स्वर्णजयंती नगर, विक्रम कालोनी, सुदामापुरी, बड़ा बाजार, कनवरीगंज, महावीरगंज, सासनीगेट, सारसौल ऐसा कोई क्षेत्र न हो जहां से ताली और थाली की आवाज न आई हो। सब कोरोना वायरस जैसे दानव से लड़ने के लिए तैयार हो चुके थे। तमाम जगहों पर शंखनाद करके जनता कफ्र्यू में अनुशासन की जीत का संदेश दिया गया। अक्सर अपार्टमेंट में रहने वाले लोग बालकनी से झांकते कम दिखते हैं। मगर, जनता कफ्र्यू के दिन शहर का कोई ऐसा अपार्टमेंट नहीं था, जहां लोग खड़े होकर कोरोना योद्धाओं को सलाम करते हुए दिखाई न दे रहे हों।

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सुकून में थे सब, लौटे पुराने दिनों की ओर 

जनता कफ्र्यू के दिन लोग पुराने दिनों की ओर लौट आए। इसे किसी ने सख्ती और परेशानी में नहीं लिया। 22 मार्च को सैकड़ों परिवार थे, जिन्होंने एक साथ भोजन किया। मोती मिल कंपाउंड निवासी राजाराम मित्र बताते हैं कि व्यस्तता के चलते परिवार का एक साथ भोजन नहीं हो पाता था। लाख जतन करने के बाद भी कोई न कोई सदस्य काम से इधर-उधर निकल जाता था। समय से बच्चे ही स्कूल से नहीं आ पाते थे। मगर, जनता कफ्र्यू के दिन पूरे परिवार के लोगों ने एक साथ बैठकर भोजन किया। बड़ों के साथ बच्चे भी थे। बहुओं ने सभी की पसंद की चीजें बनाईं। कोरोना का डर गायब था, परिवार के लोगों के साथ भोजन करके खुशी से आंखे छलक आई थी। ऐसा सैकड़ों परिवारों में हुआ। कुछ ने बच्चों के साथ कैरम, लुडो खेला। कुछ ने तो बच्चों का मन बहलाने के लिए घरों में लुकाछिपी का खेल खेला। रविंद्र हरकुट बताते हैं कि उस दिन उन्होंने रसोई में जाकर स्वयं अपने पसंद की डिस बनाई थी। तमाम पुरुषों ने पत्नियों के साथ किचन में हाथ बंटवाया था। ऐसे माहौल में कोरोना की दशहत गायब थी।

साहस का दिया परिचय, कदम नहीं खींचे पीछे 

जनता कफ्र्यू तक कोरोना वायरस घातक हो चुका था। दुनियाभर से आ रही खबरें और डरा रही थीं। हालात ये थे कि कोरोना के लक्ष्ण दिखते ही परिवार के सदस्य दूरियां बना लिया करते थे। मगर, ऐसे हालात में हमारे कोरोना योद्धाओं ने साहस का परिचय दिया। जनता कफ्र्यू के दिन डाक्टरों ने कदम नहीं खींचे, बल्कि प्रशासन से सेवा देने की पहल की। सफाई कर्मियों ने पूरे शहर की साफ-सफाई की। सन्नाटे के बावजूद वह डरे और सहमे नहीं। नगर निगम की पूरी टीम मुस्तैद रही। पुलिस कर्मियों ने तमाम जगहों पर जरूरत की चीजें पहुंचाई। सामाजसेवियों ने भी आगे कदम बढ़ाया वह भी सहयोग देने काे तैयार थे।

डटे रहे धरने में 

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जनता कफ्र्यू के दिन जहां पूरा देश कोरोना वायरस से दशहत में था, वहीं नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में धरने में लोग डटे रहे। शाहजमाल में धरने में लोग बैठे रहे। हालांकि, पुलिस-फोर्स तैनात थी, उन्होंने ऐसे हालात में मुस्तैदी से ड्यूटी दी।

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