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अब खेतों से दूर होंगे बेसहारा मवेशी, फसल होगी भरपूर…

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लखनऊ। यदि आप किसान हैं और बेसहारा मवेशियों के आतंक से परेशान हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। आप केवल गोबर और भांग के मिश्रण का छिड़काव करके खेतों से मवेशियों को भगा सकते हैं बल्कि फसल के नुकसान को रोककर भरपूर फसल भी ले सकते हैं। राजधानी के बख्शी का तालाब स्थित चंद्रभानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के एक साल के शोध के बाद यह दावा किया गया है कि यह मिश्रण बेसहारा मवेशियों को फसल दूर करने में कारगर है। कृषि महाविद्यालय के सहासक प्राध्यापक डॉ.सत्येंंद्र कुमार सिंह की देखरेख में टीम ने इस शोध को अंजाम दिया है।

ऐसे तैयार हुआ गोबर-भांग का मिश्रण

महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में एक साल तक किए गए शोध में गोबर और भांग की पत्ती का रस निकालकर मिश्रण तैयार किया गया। 10 किलोग्राम गोबर को 20 लीटर पानी में घोला गया। घोल में एक लीटर भांग की पत्ती का रस मिलाया गया। इसका प्रयोग महाविद्यालय परिसर में लगे फूल पौधों के आसपास किया गया। पौधों की बढ़त होने के साथ ही बेसहारा मवेशी उसे सूंघ कर ही भाग गए। जून के पहले सप्ताह में धान की नर्सरी के चारों और इस मिश्रण का डाला गया तो उसके पास मवेशी तो नहीं आए, लेकिन बिना छिड़काव वाले खेत में धान की नर्सरी को बेसहारा मवेशी नष्ट कर गए। मिश्रण को बनाकर कम से कम दो दिन तक सड़ने के लिए रखना होगा।

घोल से किसान बनाएं दो मीटर चौड़ी लक्ष्मण रेखा

इस मिश्रण के घेरे से फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता बल्कि यह मिश्रण जैविक खाद का काम भी करता है। इससे फसल उत्पादन में 10 से 15 फीसद तक की बढ़त भी होती है। घोल से किसी भी प्रकार का रासायनिक अवशेष नहीं पैदा होता। इससे बेसहारा मवेशियों और किसानों को भी कोई नुकसान नहीं होता है। खेत के चारों और करीब दो मीटर चौड़ाई में घोल का छिड़काव कर लक्ष्मण रेखा बनानी होगी। एक बार छिड़काव करने से एक सप्ताह तक इसका असर रहता है।

यह घोल जैविक कीटनाशक के रूप में भी काम करता है। धान की पत्ती में लगने वाला लपेटक कीट,  बैंगन में लगने वाले परोह बेधक कींट व अन्य सब्जियों में लगने वाले रस चूसक कीट को भी प्रबंधित किया जा सकता है।

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क्या कहते हैं सहायक प्राध्यापक ? 

बख्शी का तालाब  चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. सत्येंद्र कुमार सिंह के मुताबिक, बेसहारा मवेशियों को रोकने के लिए यह शोध किया गया है। बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव से इसका प्रयोग किसान कर सकते हैं। कृषि विभाग के कृषि रक्षा ईकाई के विशेषज्ञों को भी किसानों काे इसका प्रयोग करने के लिए प्रेरित करने के लिए कहा गया है।

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