गिलगित। पाकिस्तान का अवैध तरीके से जम्मू कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा हो रखा है, जिसका नाम है पीओके (POK)। पाकिस्तान की सेना इस इलाके को काफी समय से हड़पने में जुटी हुई है। इसी कड़ी में पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ के खिलाफ व्यापक विरोध गिलगित बाल्टिस्तान में फैल गया है, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अवैध भूमि अधिग्रहण के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए हैं।पाकिस्तान सेना के खिलाफ उठ रही आवाज
पाकिस्तान की सेना सालों से स्थानीय लोगों की जमीन हड़पती रही है, लेकिन यह पहला मौका है जब स्थानीय लोग सेना के खिलाफ उठे हैं। बता दें कि पाकिस्तान सेना गिलगित के मिनावर गांव में स्थानीय निवासियों की संपत्तियों को गिराने आए थे, जिसका स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया। यहां के स्थानीय लोगों का गिलगित स्काउट्स और पाकिस्तानी सेना के जवानों के साथ आमना-सामना हुआ।
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पाकिस्तान सेना के खिलाफ लगाए नारे
स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ नारे भी लगाए और उनके जमीन पर कब्जा करने का आरोप भी लगाया। प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा कि पाकिस्तानी सेना हमारे घरों और कृषि भूमि पर जबरदस्ती कब्जा कर रही है। अगर कोई घटना होती है, तो पाकिस्तानी सेना इसकी जिम्मेदारी होगी। मुख्य सचिव को इस मुद्दे को हल करने के लिए यहां आना चाहिए, नहीं तो इस मामले को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सामने उठाया जाएगा।’
पाकिस्तान सेना पर लगा जमीन हड़पने का आरोप
स्थानीय निवासियों ने पाकिस्तान सेना पर गिलगित बाल्टिस्तान के लोगों को उनकी भूमि पर अवैध कब्जे के माध्यम से मुनाफे के लिए व्यवस्थित रूप से दबाने का आरोप लगाया है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा ‘पाकिस्तानी सेना यहां आती है और हम पर हमला करती है। वे हमारे संपत्ति पर कब्जा कर लेती हैं। बिना किसी मुआवजे के 12 हजार कनाल जमीन पहले ही पाकिस्तान सेना को दे दी है। अब हम इन्हें एक इंच देने को तैयार नहीं हैं।’
सेना से गोली लेने को तैयार- प्रदर्शनकारी
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे सेना से गोली लेने को तैयार हैं, लेकिन अपनी जमीन का एक इंच भी देने को तैयार नहीं हैं। ये हमारी पुश्तैनी जमीन है। हम बिना किसी कीमत के यह जमीन नहीं देंगे।’ अवैध कराधान, उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ती बेरोजगारी के कारण गिलगित बाल्टिस्तान में पाकिस्तान विरोधी भावनाएं भी बढ़ रही हैं। पीओके के निवासियों के खिलाफ अत्याचार भी इस क्षेत्र में व्यापक रूप से बढ़ता जा रहा हैं। यहां बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है और लोग अपने मौलिक अधिकारों के लिए लड़ रहे है।