गाजीपुर। माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसके आतंक का अंत हो गया, लेकिन उसके काले कारनामों के अध्याय में ऐसे तमाम पन्ने हैं, जिन्हें पलटने के बाद कई सच सामने आते रहेंगे। उन लोगों की पीड़ा भी सामने आएगी, जिन्होंने असमय अपनों को खोया।
सत्ता के गलियारों में जड़ें जमाकर जुर्म का कारोबार करने वाला मुख्तार कई परिवारों के लिए नासूर बन गया था। उसकी मौत के बाद उन पीड़ितों के जख्मों पर मरहम जरूर लगा, लेकिन टीस अब भी है। इसी कड़ी में एक नाम आता है पूर्व भाजपा विधायक कृष्णानंद राय के परिवार का।
पूरा प्रदेश हिल गया था…
माफिया मुख्तार का शिकार बने भाजपा के कद्दावर नेता कृष्णानंद राय की हत्या से पूरा प्रदेश हिल उठा था। मुख्तार अंसारी का नाम 29 नवंबर, 2005 को तत्कालीन भाजपा विधायक कृष्णानंद राय सहित सात लोगों की हत्या की साजिश रचने के तौर पर सामने आया था। विधायक उस दिन सियाड़ी गांव में क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन करके लौट रहे थे।
हमलावरों ने लट्ठूडीह-कोटवा नारायणपुर मार्ग के बसनियां की क्षतिग्रस्त पुलिया के पास वारदात को अंजाम दिया था। इसके बाद कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय और बेटे पीयूष राय को काफी समय तक मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
घर के मुखिया को खोने के बाद परिवार के सभी सदस्य टूट गए। न्याय पाने के लिए वर्षों संघर्ष में जुटे रहे। इस दौरान अलका व उनके बेटे को धमकी भरा पत्र भी भेजा गया। मामले के गवाहों को धमकाकर पक्षद्रोही तक बना दिया गया।
इन सबके बावजूद परिवार ने न्यायपालिका पर भरोसा बरकरार रखते हुए जंग जारी रखी। उनके परिवार के लोगों ने अंत तक मुख्तार के सामने हार नहीं मानी। इतना ही नहीं, कृष्णानंद के परिवार के लोगों को नौ साल बाद 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद सुरक्षा मिल सकी।
सियासी हार के बाद रची हत्या की साजिश
घटना के दिन आधुनिक असलहों से करीब 500 राउंड गोलियां चलने से पूरा पूर्वांचल दहल उठा था। घटना की नृशंसता और बेखौफ शूटर सात लोगों की हत्या करने के बाद तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय की शिखा तक काटकर ले गए थे।
दरअसल, 2002 के विधानसभा के चुनाव में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को उनके गढ़ मुहम्मदाबाद से हराकर कृष्णानंद राय ने कमल का झंडा फहराया था। अंसारी बंधुओं को राय के सामने अपनी सियासी जमीन खिसकने का डर सताने लगा था। इसलिए उन्हें रास्ते से हटाया गया।
प्रमुख गवाह की मौत के बाद नहीं कराया पोस्टमार्टम
कृष्णानंद राय हत्याकांड के प्रमुख गवाह शशिकांत राय निवासी सियाड़ी की आठ माह बाद संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी। घटना के दिन गनर साथ नहीं था। अंदेशा था कि उसे जहर देकर मारा गया था। कहा जाता है कि अधिकारियों ने इसलिए पोस्टमार्टम नहीं कराया कि सच सामने आ जाएगा।
मुकर गए थे अफजाल व मुख्तार के खिलाफ गवाह
प्रमुख गवाहों में बीरपुर निवासी रमेश राय व हरिहर निवासी डब्बू राय इस कदर डर गए कि मुख्तार व उसके भाई अफजाल अंसारी के खिलाफ 120 बी के मुकदमे में बयान से मुकर गए। यही वजह रही कि मुख्तार और अफजाल सीबीआइ कोर्ट से बरी हो गए। हालांकि, बाद में केंद्र और प्रदेश में भाजपा सरकार के आने के बाद इस मामले में गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे में गाजीपुर के एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोनों को दोषी माना। मुख्तार को 10 साल और अफजाल को चार साल की सजा मिली।
अंसारी परिवार ने शासन-प्रशासन के रसूख का इस्तेमाल करते हुए मुकदमे के गवाहों को डराने-धमकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बनारस स्थित मकान में 2012 में धमकी भरा पत्र मिला था। लिखा गया था कि गवाही देने का अंजाम भुगतना होगा। कई बार तो गवाहों को उनके साथ तैनात गनर से बातचीत कराकर धमकाने में मदद करते थे। सपा-बसपा शासन काल में कई वर्षों तक गवाही के दौरान परिवार को सुरक्षा नहीं दी गई थी। पुलिस के लोग आकर सुरक्षा के नाम पर मकानों की जांच करते थे। पूरे घर में तलाशी लेते थे।
-पीयूष राय, कृष्णानंद राय के बेटे।