नोएडा। नियंत्रक, महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से साफ है कि नोएडा प्राधिकरण में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण भी इससे अछूता नहीं है। उसकी सीएजी रिपोर्ट आनी बाकी है। उत्तर प्रदेश में सरकार बदलती रही। प्राधिकरण में अधिकारी भी बदले, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़ें फैलने से नहीं थमीं। स्थापना के बाद ही इसकी शुरुआत हो गई थी।
प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ जमीन आवंटन और सार्वजनिक सुविधा के नाम पर होने वाला खर्च है। आश्चर्य यह है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के गठन को कई दशक हो गए हैं, लेकिन तीनों ही प्राधिकरणों में विकास के नाम पर खर्च होने वाले धन और जमीन आवंटन के लिए एक समान मानक प्रक्रिया (यूनिफाइड स्टैंडर्ड प्रोसीजर) नहीं है। मूलत: यहीं भ्रष्टाचार की जड़ है।
प्राधिकरण अधिकारियों ने मर्जी से नियम-विनियम (रूल्स-रेगूलेशन) बनाए और तोड़े। बिल्डरों को अनुचित लाभ देने के लिए नियमों को लचीला कर दिया गया। मनमर्जी से कई सेक्टरों में औद्योगिक श्रेणी के लिए आरक्षित जमीन का भू-उपयोग बदलकर आवासीय कर दिया गया। ग्रेटर नोएडा वेस्ट (नोएडा एक्सटेंशन) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
यहां की ढाई हजार हेक्टेयर भूमि उद्योग के लिए आरक्षित थी, उसे बदलकर आवासीय कर दिया गया। जमीन आवंटन की एकसमान मानक प्रक्रिया होती तो भ्रष्टाचार की गुजाइंश कम रहती और मनमानी पर अंकुश भी लगता। सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है। सरकार को सुझाव देते हुए कहा है कि नोएडा में नए सिरे से जमीन आवंटन की पारदर्शी प्रणाली को तैयार करना चाहिए, ताकि अधिकारियों के अधिकार में विवेकाधिकार की न्यूनतम संभावना रहे। सीएजी ने यह भी कहा है कि सार्वजनिक सुविधाओं पर होने वाला खर्च राज्य सरकार की तरफ से निर्धारित किया जाना चाहिए। इससे प्राधिकरण अधिकारियों को गैरजरूरी खर्चे से रोका जा सकेगा।
भ्रष्टाचारियों पर नहीं कसा जा सका शिकंजा: नोएडा में इससे पहले होटल भूखंड घोटाला, लीज रेंट घोटाला, नोएडा से ग्रेटर नोएडा तक बनी 130 मीटर चौड़ी सड़क निर्माण घोटाला, गौतमबुद्ध विवि में निर्माण घोटाला, फार्म हाउस आवंटन घोटाला, अंडर ग्राउंड केबलिंग घोटाला, नोएडा क्रिकेट स्टेडियम पवैलियन निर्माण घोटाला, लीजबैक घोटाला, स्पोर्ट्स सिटी घोटाला, मल्टीलेबल कार पार्किंग और ऐलीवेटेड रोड में अतिरिक्त भुगतान घोटाला हुआ। वहीं भ्रष्टाचार करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह के अलावा गड़बड़झाला करने वाले सब अधिकारी बच निकले।
तबादले का फैसला भी नहीं आया काम: प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए योगी सरकार ने सत्ता में आते ही नोएडा व ग्रेटर नोएडा में वर्षों से जमे अधिकारियों के तबादले का फैसला किया। इसके लिए प्रदेश के सभी औद्योगिक प्राधिकरणों का केंद्रीयकरण कर यहां से अधिकारी यूपी सीडा, गोरखपुर, कानपुर व लखनऊ विकास प्राधिकरण में भेजे गए। कुछ ही दिन बाद अधिकांश अधिकारी लौट कर वापस नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में आ गए।