नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 1992-93 के मुंबई दंगे में लापता हुए 108 लोगों से जुड़े रिकार्ड की जांच के लिए शुक्रवार को एक समिति का गठन कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को लापता लोगों के स्वजन या कानूनी उत्तराधिकारी का पता लगाने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए।
लापता लोगों के उत्तराधिकारियों को मुआवजा दे सरकार
इसके साथ ही जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि लापता लोगों के कानूनी उत्तराधिकारियों को राज्य सरकार दो-दो लाख रुपये मुआवजा दे। 22 जनवरी, 1999 से भुगतान की तिथि तक नौ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी दिया जाए। अदालत ने कहा, राज्य सरकार कानून-व्यवस्था तथा लोगों का अधिकार बनाए रखने में नाकाम रही।
दंगों ने लोगों के जीवन पर डाला प्रतिकूल प्रभाव
पीठ के अन्य जजों में जस्टिस एएस ओका और विक्रमनाथ शामिल थे। अदालत ने कहा कि दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 में हुए दंगों ने प्रभावित इलाके के नागरिकों की जिंदगी पर प्रतिकूल असर डाला। नागरिक यदि सांप्रदायिक तनाव के माहौल में रहने को बाध्य होते हैं, तो इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया जीवन का अधिकार प्रभावित होता है।
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राज्य सरकार के फैसले के बावजूद नहीं मिला मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह समिति मुआवजे के हकदार अन्य लोगों की तलाश के लिए राज्य सरकार के प्रयासों पर नजर रखेगी। राज्य सरकार ने अपने पहले प्रस्ताव में इन पीडि़तों को मुआवजा देने का फैसला किया था। लेकिन, बाद में इन्हें मुआवजा नहीं दिया गया। शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर राज्य सरकार को श्रीकृष्ण जांच समिति के निष्कर्षों को स्वीकार करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।