नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पांच, दस और 20 रुपये के नकली सिक्के बनाने वाली फैक्ट्री का पर्दाफाश कर फैक्ट्री मालिक नरेश कुमार समेत पांच को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने सबसे पहले 22 अप्रैल को टीकरी बार्डर स्थित पीवीसी मार्केट से नरेश कुमार को गिरफ्तार किया। उसके पास 10 रुपये के 10,113 नकली सिक्के बरामद किए गए। वह पीवीसी मार्केट में अपने एक साथी को नकली सिक्के देने आया था।
पूछताछ के बाद पुलिस ने उसकी फैक्ट्री पर छापा मारा तो बीस पैकेट (प्रति पैकेट में चार हजार सिक्के), 11,500 खुले सिक्के और सिक्के बनाने के उपकरण बरामद किए गए। सभी सिक्कों की कीमत 12 लाख रुपये बताई जा रही है।स्पेशल सेल के डीसीपी राजीव रंजन के मुताबिक, नरेश कुमार हरियाणा के बहादुरगढ़ का रहने वाला है। बिहार के मधुबनी के लाडू गांव निवासी संतोष कुमार मंडल, सारण के गांव सडवारा निवासी श्रवण कुमार शर्मा, सिवान के बसंतपुर निवासी धर्मेंद्र महतो, सारण के गांव बसदी निवासी धर्मेंद्र कुुमार शर्मा सिक्कों को बनाते थे।
पुलिस को जब जानकारी मिली पुलिस को इनपूट मिला था कि पांच, दस और 20 रुपये के नकली सिक्के बनाए जा रहे हैं। इस गोरखधंधे में नरेश कुमार लिप्त है। इसके बारे में जानकारी जुटाने के बाद 22 अप्रैल को टिकरी बार्डर से झडौदा कलां में छापेमारी की गई, जहां से आरोपित
को पकड़ा गया। उसकी कार से दस रुपये के 10,112 नकली सिक्के मिले। पूछताछ में आरोपित ने बताया कि चरखी दादरी के इमलोता गांव में उसने फैक्ट्री लगा रखी है। जहां पर चार यूनिटों पर रोजाना भारी संख्या में नकली सिक्के बनाए जाते हैं।
एक सिक्का बनाने पर 25 पैसे देता था
पूछताछ में पता चला कि नरेश फैक्ट्री के कर्मचारियों को एक सिक्का बनाने पर 25 पैसे देता था। एक कर्मचारी दिन भर में 1500 से 2000 नकली सिक्के बनाता था। फिलहाल पुलिस यह पता लगा रही है कि नरेश कब से यह काम कर रहा था और अब तक कितने सिक्कों को वह बाजार में पहुंचा चुका है। यह भी पता चला है कि नरेश द्वारा बैंक में भी सिक्कों को जमा कराया गया है। फिलहाल पुलिस आरोपितों से पूछताछ कर रही है।
ऐसे बनता था सिक्का
सिक्के का भीतरी हिस्सा सफेद रंग के स्टील का होता है और इसे ‘टिक्की’ कहा जाता है। जबकि बाहरी भाग पीतल का होता है इसे ‘वाशर’ कहा जाता है। कच्चा माल नरेश खरीदता था। फिर भीतरी हिस्से को हथौड़े से वाशर में एडजस्ट किया जाता था। इसके बाद सिक्के पर लगने वाले प्रतीक चिह्न को लगाया जाता था।
हाइड्रोलिक मशीनों से सिक्कों पर प्रतीक चिह्न आदि को उकेरा जाता था। उसके बाद सिक्कों को पाली बैग में पैक किया जाता था, जिनमें से प्रत्येक में 100 सिक्के थे। खेप को असली दिखाने के लिए बैच नंबर लाट नंबर तारीख आदि वाले इंडिया मिंट (टकसाल) के नकली स्टीकर भी चिपकाए जाते थे।
तीन बार गिरफ्तार हो चुका है नरेश
नरेश पहले मांग के आधार पर कालीन, वाहनों के सीट कवर बेचता था। साल 2016 में सिद्धार्थ लूथरा और उपकार लूथरा के साथ दिल्ली के बवाना में नकली सिक्कों की निर्माण इकाई शुरू की। इसका भंडाफोड़ दिल्ली के केएन काटजू मार्ग के पुलिसकर्मियों ने किया था। जमानत पर रिहा होने के बाद उसने फिर से सिक्कों का अवैध निर्माण शुरू किया और फिर से दो मौकों पर हरियाणा पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया।