लखनऊ। पुराने लखनऊ की तंग गलियों में चल रहे अवैध मदरसों में बच्चों को बाहर तक नहीं निकलने दिया जाता है। बच्चे व्यावहारिक दुनिया से अलग रह रहे हैं। उन्हें बाहर और समाज के नए तौर तरीकों की जानकारी भी नहीं है।
आयोग ने मदरसे के मौलवी को बुलाकर बयान दर्ज किए और दस्तावेज भी देखे। इस पर उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकारण संरक्षण आयोग ने गहरी चिंता व्यक्त की है। अपनी रिपोर्ट में आयोग ने स्पष्ट कहा कि इस तरह बच्चों को एक कमरे के अंदर रखना ठीक नहीं है। उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो सकता है।
आयोग की सदस्य डा. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि निरीक्षण के दौरान जब उन्होंने बच्चों से बात की थी तो उनका व्यवहार सामान्य बच्चों की तरह नहीं था। उनकी बातों में कट्टरता झलक रही थी। मदरसों में पढ़ रहे बिहार, झारखंड समेत अन्य प्रांत के बच्चे सालों से अपने माता-पिता से दूर हैं।
उल्लेखनीय है बीते दिनों बालागंज बरौरा में आवासीय मदरसे इस्लामिया शमसुल उमूल में आठ साल की बच्ची से हुए शारीरिक शोषण की घटना के बाद आयोग की टीम ने छापेमारी की थी, जिसमें चौकाने वाले तथ्य सामने आए थे।
बिना मदरसा बोर्ड में पंजीकरण के यहां 10 से 12 मदरसे चलते मिले। यह सभी मदरसे आवासीय, पर मानक एक भी नहीं पूरा है। आठ गुणा 10 के कमरों में भीषण गंदगी के बीच नौ से 11 बच्चियां रखी जाती हैं। बच्चियां जमीन पर सोती हैं। इनकी उम्र सात से 20 वर्ष है।