गुमशुदा लोगों की तलाश और अज्ञात शवों की पहचान में सहायता के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग की व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता का कहना था कि हर साल लगभग 40 हजार लावारिस शव मिलते हैं. डीएनए प्रोफाइलिंग से उनकी पहचान में आसानी होगी.
‘लाखों की संख्या में लापता हैं लोग’
आगरा के रहने वाले वकील किशन चंद जैन ने कोर्ट को बताया कि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक लाखों लोग इस समय लापता हैं. इनमें बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की है. जो लोग अपने परिवार के किसी सदस्य की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस को लिखवाते हैं, उनकी डीएनए प्रोफाइलिंग नहीं की जाती. उसी तरह अज्ञात शव मिलने या किसी लापता व्यक्ति के मिलने पर उसकी भी डीएनए रिपोर्ट नहीं बनाई जाती. अगर शिकायतकर्ता के डीएनए प्रोफाइल से अज्ञात शव के डीएनए का मिलान किया जाए, तो कई केस सुलझ सकेंगे. पीड़ित परिवारों की भी मदद हो सकेगी.
‘कोर्ट नहीं देता संसद को कानून बनाने का आदेश’
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुरू में कहा कि कोर्ट संसद को कानून बनाने का आदेश नहीं देता. इस पर याचिकाकर्ता ने बताया कि इस मामले में सिर्फ एक मानक व्यवस्था (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर) बनाने की जरूरत है. इससे अज्ञात शवों की पहचान बहुत आसान हो जाएगी. इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब देने के लिए कह दिया.
केंद्र ने दिया था कानून बनाने का आश्वासन
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह भी बताया है कि 2012 और 2013 में भी इसी तरह की याचिकाएं दाखिल हुई थीं. 6 साल तक उन्हें लंबित रखने के बाद कोर्ट ने 2018 में उनका निपटारा कर दिया था. तब कोर्ट ने सुनवाई इस आधार पर बंद की थी कि केंद्र सरकार के वकील ने इस मसले पर कानून बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है. इससे जुड़ा बिल 2 बार संसद में रखा गया, लेकिन यह कानून की शक्ल नहीं ले पाया.