काबुल। अफगानी महिलाओं के लिए बुर्का अनिवार्य करने के बाद तालिबान ने अब अफगानिस्तान स्थित संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) की महिला कर्मियों को भी हिजाब पहनने का फरमान सुनाया है। खामा प्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यह आदेश धार्मिक मामलों के मंत्रालय की तरफ से जारी किया गया है। यूएनएएमए की तरफ से जारी एक बयान के अनुसार, मंत्रालय के अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि उसके कर्मचारी संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय के बाहर खड़े रहकर महिला कर्मियों की निगरानी करेंगे।
अगर कोई महिला कर्मी बिना हिजाब पाई गई, तो उसे विनम्रता से समझाया जाएगा। यूएन दफ्तर के बाहर महिला कर्मियों के लिए हिजाब अनिवार्य करने संबंधी पोस्टर भी चिपकाए गए हैं। मंत्रालय ने कहा कि महिला कर्मियों के लिए चादरी या बुर्का पहनना बेहतर होगा। ह्यूमन राइट वाच के महिला अधिकार प्रभाग की एसोसिएट डायरेक्टर हीथर बर्र ने ट्वीट किया, ‘तालिबान का दावा है कि नया पोशाक नियम एक सलाह है, लेकिन इसे थोपा जा रहा है। ऐसे में महिला कर्मियों की सुरक्षा व आजादी का क्या होगा?’
अफगानिस्तान से फैले आतंकवाद के विरुद्ध मध्य एशिया की मदद करेंगे पुतिन
दुनिया की नजर जहां यूक्रेन पर है, वहीं मध्य एशियाई देश इस समय दोहरी मार झेल रहे हैं। उन्हें जहां पूर्वी यूरोप से अपनी तरफ खतरा बढ़ता महसूस हो रहा है, वहीं दक्षिणी सीमा पर अफगानिस्तान से फैल रहे आतंकवाद ने चिंता बढ़ा दी है। रूस के नेतृत्व वाले कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी आर्गनाइजेशन (सीएसटीओ) के सदस्य देशों ने इस मुद्दे पर सोमवार को मास्को में आयोजित सम्मेलन में मंथन किया।
इस दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अफगानिस्तान से फैल रहे आतंकवाद के खिलाफ मध्य एशिया की मदद का एलान किया। दूसरी तरफ, तालिबानी सरकार के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने सीएनएन के साथ एक साक्षात्कार में फिर कहा कि अफगानिस्तान, अमेरिका समेत दुनिया के सभी देशों से अच्छे संबंध रखना चाहता है।
अमेरिकी सैनिकों की वापसी अफगानिस्तान के पतन की मुख्य वजह : रिपोर्ट
एपी के अनुसार, अमेरिका के स्पेशल इंसपेक्टर जनरल फार अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन (एसआइजीएआर) ने रक्षा मुख्यालय पेंटागन व सेना के शीर्ष अधिकारियों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी अफगानिस्तान के पतन की मुख्य वजह थी। अधिकारियों ने कहा कि उनकी योजना 2,500 अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान में छोड़ने की थी, लेकिन इसे मंजूरी नहीं दी गई। बता दें कि गत वर्ष अगस्त में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था।