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आदिवासी संगठनों ने नोएडा में पूर्वोत्तर के लोगों के लिए स्पेशल हेल्पलाइन स्थापित करने के लिए शाह से लगाई गुहार

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नोएडा। गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से तीन आदिवासी संगठनों नोएडा में पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के लिए विशेष हेल्पलाइन (Special Helpline) नंबर जारी करने का आग्रह किया है। ताकि पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा की घटनाओं का तत्काल समाधान किया जा सके।

चकमा वेलफेयर एंड कल्चरल सोसाइटी नोएडा (CWCSN), अरुणाचल प्रदेश चकमा छात्र संघ और अरुणाचल प्रदेश चकमा और हाजोंग छात्र संघ ने केंद्रीय गृह मंत्री को अपने संयुक्त ज्ञापन में कहा कि अकेले नोएडा में चकमा समुदाय की आबादी लगभग 1,000 है। वे नियमित रूप से नस्लीय भेदभाव और हिंसा का सामना करते हैं। तीनों संगठनों ने कहा कि, पूर्वोत्तर राज्यों की आबादी नोएडा में काम कर रही है। यहां पूर्वोत्तर के लोगों के लिए कोई विशेष हेल्पलाइन स्थापित नहीं की गई है, जिससे हिंसक घटानाओं का तत्काल निवारण किया जा सके।

दो युवकों की हुई थी पिटाई

तीनों संगठनों ने कहा कि 13 अगस्त को नोएडा में एक मकान मालिक ने पूर्वोत्तर को दो युवकों ज्ञान रंजन चकमा और निवारन चकमा की बुरी तरह से पिटाई कर दी थी। आरोप है कि दोनों को लोहे की रॉड और ईंट से पीटा गया था।

CWCSN के अध्यक्ष संतोष बाबूराह चकमा ने कहा कि दोनों के सिर में गंभीर चोटें आईं थी। इस घटना के बाद दोनों ने नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए, लेकिन पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि बाद में पुलिस ने दोनों का मेडिकल करवाते हुए एफआईआर दर्ज की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की।

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“शारीरिक बनावट के कारण होते हैं हिंसा के शिकार”

ज्ञापन में कहा गया है कि पूर्वोत्तर के लोग शारीरिक बनावट की वजह से अलग दिखाई देते हैं। उन्हें अक्सर स्थानीय आबादी द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। इसमें कहा गया है कि पूर्वोत्तर के लोग असुरक्षित महसूस करते हैं और अक्सर अपनी मंगोलियाई विशेषताओं के कारण भेदभाव और हिंसा के शिकार होते हैं।

दिए गए ज्ञापन के अनुसार, भेदभाव के सबसे सामान्य रूपों में भद्दी टिप्पणियां और अपमानजनक शब्द, चिढ़ाना, ताना मारना, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न, शारीरिक हमले भी शामिल हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों को कार्यस्थलों पर भी भेदभाव, उत्पीड़न, वेतन समय पर न मिलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में, वे पुलिस के व्यवहार और रवैये के कारण मामलों की रिपोर्ट नहीं करते हैं।

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