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विजय से राज राज बनकर पहुंचा लन्दन, और फिर जेल, पढ़िए पूरा मामला

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नई दिल्ली। लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग को गलत जानकारी देकर नया पासपोर्ट बनाने वाले शख्स को आइजीआइ एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया गया है। इमिग्रेशन की शिकायत पर आरोपित के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है। आरोपित यात्री राज राणा लंदन से दोहा के रास्ते नई दिल्ली पहुंचा। यहां पहुंचने पर एयरपोर्ट से बाहर निकलने के लिए वह इमिग्रेशन काउंटर पर अपने कागजात की जरूरी जांच कराने पहुंचा।

जांच के दौरान इमिग्रेशन अधिकारी ने पाया कि इसकी पिछली यात्रा से जुड़ी जानकारी कहीं दर्ज नहीं है। जब उससे पूछताछ की गई तो पता चला कि वह एक अन्य पासपोर्ट के आधार पर वर्ष 2001 में लंदन गया था। चंडीगढ़ स्थित पासपोर्ट कार्यालय जारी पासपोर्ट में इसका नाम विजय कुमार पाया गया। उसने बताया कि लंदन पहुंचने के बाद जब पासपोर्ट की अवधि समाप्त हो गई तब किसी तरह इंतजाम कर इसने एक नया पासपोर्ट वहां बनवा लिया, लेकिन इस बार उसने राज राणा नाम से पासपोर्ट बनवाया।

जब इस पासपोर्ट की वैधता अवधि समाप्त हो गई तो उसने इसका नवीकरण भी करवा लिया। इमिग्रेशन अधिकारियों ने पुलिस को कहा कि आरोपित ने भारत में इमिग्रेशन को तथा लंदन में भारतीय उच्चायोग को गलत जानकारी देकर ठगा है। वहीं एक अन्य मामले में फर्जी कागजात के जरिये विदेश भेजने वाले एक एजेंट को आइजीआइ एयरपोर्ट थाना पुलिस ने तमिलनाडु के कोयंबटूर से गिरफ्तार किया है। आरोपित एजेंट जसवा टी कोयंबटूर व आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को विदेश भेजने का झांसा देता था।

एयरपोर्ट जिला पुलिस उपायुक्त संजय त्यागी ने बताया कि 16 मार्च को आइजीआइ पर इमीग्रेशन विभाग के अधिकारियों ने फर्जी कागजात के जरिये अबू धाबी जा रहे एक यात्री सुरेश कृष्णन को पकड़ा। इसके पास से कनाडा का फर्जी वीजा मिला। उसने पुलिस को बताया कि एक एजेंट जसवा टी ने उससे लाखों रुपये लेकर कनाडा का वीजा और अन्य कागजात उपलब्ध करवाया था।

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वह कोयंबटूर स्थित अपने कार्यालय में मिलता है। एजेंट की गिरफ्तारी के लिए आइजीआइ थाना प्रभारी इंस्पेक्टर यशपाल के नेतृत्व व एसीपी बिजेंदर सिंह की देखरेख में गठित टीम ने कोयंबटूर पहुंचकर 21 मार्च को जसवा टी को गिरफ्तार कर लिया।

पूछताछ में उसने अपने सहयोगी शानू और अंकित का नाम बताया। दोनों ने उसे वीजा उपलब्ध कराया था। यह भी पता चला कि जसवा टी को हिंदी नहीं आती थी और एजेंट शानू और अंकित को तमिल भाषा का ज्ञान नहीं था। इसका समाधान कुणाल करता था, जिसे दोनों भाषाएं आती थीं।

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