उत्तराखंड के नए डीजीपी का काउंटडाउन शुरू हो गया है। तीन अधिकारियों का नाम पैनल में शासन को भेजा जा चुका है। लेकिन, एडीजी अभिनव कुमार के नाम पर उनके मूल कैडर को लेकर कुछ लोग और अधिकारी सवाल उठा रहे हैं। नियमानुसार राज्य कैडर के आईपीएस को ही डीजीपी बनाया जा सकता है। क्योंकि डीजीपी एकल पद है, इसीलिए यह बात उठ रही है। हालांकि, इस सवाल का जवाब भी एक अलग व्यवस्था से दिया जा रहा है। अभिनव कुमार सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) से यूपी जाने पर स्टे मिला हुआ है। ऐसे में जानकार मान रहे हैं कि इस हिसाब से ही उनका नाम भेजा गया होगा। हालांकि, अंतिम निर्णय यूपीएससी को लेना है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इन तीनों अधिकारियों में से बाजी कौन मारता है।
दरअसल, 1996 बैच के आईपीएस अभिनव कुमार का मूल कैडर उत्तर प्रदेश है। उत्तराखंड गठन के बाद अभिनव कुमार यहां आ गए थे। यहां उन्होंने विभिन्न जिलों की कप्तानी भी संभाली। वह 2009 में डीआईजी और 2014 में आईजी बने। आईपीएस अभिनव कुमार आईटीबीपी में जम्मू कश्मीर में तैनात रहे। जिस वक्त जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तब घाटी में कमान उन्हीं के हाथ में थी। डीजीपी के लिए निर्धारित सेवा अवधि की शर्तों को यूपीएससी ने शिथिल करते हुए 25 वर्ष कर दिया तो अभिनव भी इस दायरे में आ गए। पिछले दिनों एडीजी दीपम सेठ और पीवीके प्रसाद के साथ उनका नाम भी पैनल में भेज दिया गया।
लेकिन, सवाल उठे कि जब उनका कैडर यूपी है तो उनका नाम कैसे इस पैनल में भेजा गया। नियमानुसार उत्तराखंड कैडर के अधिकारियों का नाम ही पैनल में भेजा जाना था। हालांकि, इस सवाल का जब जवाब खोजने की कोशिश हुई तो जानकारों और विशेषज्ञों ने इसे उनके स्टे से जोड़कर बताया। जानकारों का कहना है कि अभिनव कुमार को कैट से जो स्टे मिला है उसका कभी भी राज्य सरकार ने विरोध नहीं किया। ऐसे में यह स्टे बरकरार है और निर्विरोध अभिनव कुमार के उत्तराखंड में ही तैनात रहने की संभावना है। यही सोचकर उनका नाम पैनल में भेजा गया होगा। बता दें कि एडीजी अभिनव कुमार इस वक्त मुख्यमंत्री के विशेष सचिव भी हैं।
लगभग एक महीने में होगी तस्वीर साफ
बता दें कि इस पैनल के नामों पर यूपीएससी के चेयरमैन की अध्यक्षता वाली समिति निर्णय लेगी। इसमें केंद्रीय गृह सचिव, मुख्य सचिव उत्तराखंड, एक सीएपीएफ के डीजी और उत्तराखंड के वर्तमान डीजीपी शामिल रहेंगे। यदि तीनों नाम वहां से आ जाते हैं तब भी अंतिम निर्णय सरकार को ही लेना है। सरकार जिसे चाहे डीजीपी बना सकती है। हालांकि, इसके लिए अब तकरीबन एक महीने का इंतजार और करना होगा। वर्तमान डीजीपी के सेवानिवृत्त होने से चंद दिनों पहले तक ही स्थिति साफ हो सकती है।