Home Breaking News कैसी थी 6 दिसंबर 1992 की सुबह, 29 साल पहले उस दिन क्या हुआ, कब और कैसे गिरे गुंबद?
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कैसी थी 6 दिसंबर 1992 की सुबह, 29 साल पहले उस दिन क्या हुआ, कब और कैसे गिरे गुंबद?

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अयोध्या। 29 वर्ष पूर्व अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना निश्चित रूप से हाहाकारी थी किंतु इस घटना की वर्षगांठ पर सृजन और संवाद की बंसी बजती रही। यद्यपि सतर्कता के तौर पर पूरी अयोध्या और विशेष रूप से राम जन्मभूमि की ओर जाने वाले मार्ग पुलिस की विशेष निगरानी में रहे किंतु पूर्व की तरह उन्हें कोई चुनौती देने वाला नहीं था। जनजीवन सामान्य गति से चलता रहा।

यह बदलाव यूं ही नहीं परिभाषित हो रहा है। इसके मूल में नौ नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है। इस निर्णय से न केवल राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण की संभावना प्रशस्त हुई बल्कि संपूर्ण रामनगरी को दिव्यता प्रदान की जा रही है । ढांचा गिराए जाने की वर्षगांठ पर भी निर्माण का यह सिलसिला निर्बाध रूप से आगे बढ़ता रहा । राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की प्रक्रिया बुनियाद से ऊपर उठकर आधार भूमि के रूप में आकार ग्रहण करने को है। जबकि अयोध्या को नया कलेवर दिए जाने का अभियान भी इस नगरी को सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक नगरी के रूप में विकसित किए जाने की प्रक्रिया के साथ सोमवार को भी परिलक्षित हो रहा होता है।

छह दिसंबर 1992 को थम गई थी रामनगरीः छह दिसंबर 1992 को ढांचा गिराए जाने के साथ ऐसा लग रहा था कि राम नगरी जैसे थम गई हो तो आज यह स्पष्ट हो रहा होता है कि राम नगरी संभावनाओं के नए आकाश की ओर उड़ रही है। अयोध्या का जो रेलवे स्टेशन किसी कस्बाई रेलवे स्टेशन की तरह राम नगरी की गरिमा के विपरीत सदैव शिकवा शिकायत का केंद्र रहता था अब उसे विश्वस्तरीय रेलवे स्टेशन की तरह सज्जित किए जाने का अभियान पूर्णता की ओर है। यहां गत दो वर्षो के दौरान नित्य की तरह सैकड़ों श्रमिक और अभियंता पूरी तल्लीनता से सक्रिय दिखते हैं।

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विश्वास पर्व के रूप में मनेगा छह दिसंबरः रेलवे स्टेशन से कुछ ही फासला तय करने पर राम जन्मभूमि परिसर से सामना होता है। परिसर के अंदर और बाहर की गतिविधियां निर्माण की संभावनाएं प्रशस्त करती हैं तो रामलला के दर्शन की कतार से लगता है कि विवाद बहुत पीछे छूट चुका है। रामलला के दर्शन मार्ग पर स्थित राम कचहरी मंदिर के महंत शशिकांत दास कहते हैं कि श्री राम सबके हैं और यह सच्चाई यहां आने वाले श्रद्धालुओं से भी सिद्ध होती है। ढांचा गिराए जाने की वर्षगांठ पर करीब से नजर रखने वाले मुस्लिम लीग के प्रांतीय अध्यक्ष डॉक्टर नजमुल हसन गनी रामलला के दर्शनार्थियों में तो शामिल नहीं होते किंतु उन्हें यह कहने में कोई हिचक नहीं कि रामलला तो पूरी मानवता के हैं और छह दिसंबर का दिन अब आपसी विश्वास के पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए ।

साथ ही इस दिशा में गंभीर प्रयास करते हुए अयोध्या की साझी विरासत पूरी भव्यता से सहेजी जानी चाहिए। वह याद दिलाते हैं कि अयोध्या श्री राम के साथ दूसरे पैगंबर हज़रत शीश सहित अनेक सूफी संतों गौतम बुद्ध जैन तीर्थंकरों सिख गुरु वैष्णव संतो की नगरी है और यहां संवाद समन्वय की जैसी संभावना है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। यह सच्चाई सरयू तट पर बयान भी हो रही होती है। पुण्य सलिला सरयू में पुष्प अर्पित करने के लिए तैयार हिंदू श्रद्धालुओं को फूल देने वालों में कुछ मुस्लिम विक्रेता भी शामिल होते हैं। सरयू तट के ही मार्ग पर वह दुकानें भी राम नगरी जकी साझी विरासत को इंद्रधनुषी छटा प्रदान करती हैं जहां हिंदू भक्तों के लिए मुस्लिम दुकानदार खड़ाऊं बेचते नजर आते हैं ।

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