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नोएडा प्राधिकरण को शातिर बिल्डरों ने एफएआर खरीदकर लगाया 3000 करोड़ रुपये का चूना

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नोएडा। भ्रष्ट निकाय की मुहर लगे प्राधिकरण की कारगुजारियों के जो चिट्ठे खुलने शुरू हुए तो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में बिल्डरों को उनकी मर्जी की सुविधाएं देने के लिए नियम-शर्त सब ताक पर रख दिए गए। वर्ष 2009 से 2012 के बीच दोनों प्राधिकरणों के तत्कालीन सीईओ मोहिंदर सिंह और ओएसडी यशपाल सिंह ने जहां बिल्डरों को भूखंड आवंटन में भारी रियायत देकर अनुचित लाभ पहुंचाया, वहीं नियमों में बदलाव कर प्राधिकरण को आर्थिक क्षति भी पहुंचाई। पहले मात्र 10 फीसद धनराशि पर बिल्डरों को भूखंड आवंटित कर दिए। बाद में भूखंडों पर स्वीकृत मानचित्र से अधिक फ्लैट बनाने के लिए फ्लोर एरिया रेसियों (एफएआर) भी दे दिया। बिल्डरों ने एफएआर खरीदकर अतिरिक्त फ्लैट बनाकर उन्हें बेच दिया। इससे उन्हें करोड़ों की मोटी कमाई हुई, लेकिन एफएआर के बदले प्राधिकरण को दी जाने वाली धनराशि का भुगतान नहीं किया। नियम-शर्तों के मुताबिक तीन माह के अंदर सारी धनराशि का भुगतान करना था। ऐसा नहीं करने पर एएफआर स्वत: निरस्त हो जाएगा, लेकिन एक किस्त के बाद बिल्डर ने पैसा नहीं दिया और प्राधिकरण ने नोटिस भी नहीं भेजा। इस समय अंतराल में तकरीबन प्राधिकरण को तीन हजार करोड़ का चूना लगा, बिल्डरों को फायदा पहुंचाया गया।

बिल्डर को लाभ पहुंचाने के लिए बदल दिए नियम

नोएडा और ग्रेटर नोएडा, दोनों ही प्राधिकरणों में 2012 से पहले पर्चेजेबल एफएआर का प्रविधान नहीं था। तब भूखंड आवंटन के समय 2.75 के एफएआर का प्रविधान था। इतने एफएआर के हिसाब से ही मानचित्र स्वीकृत कराकर फ्लैटों की मंजिला और संख्या निर्धारित होती थी। प्राधिकरण अधिकारियों ने बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए नियम बदल दिए। बिल्डरों को स्वीकृत मानचित्र के हिसाब से अधिक फ्लैट बनाने के लिए पर्चेजेबल एफएआर का प्रविधान कर दिया गया। इसके तहत 2.75 के एफएआर को बढ़ाकर 3.50 कर दिया गया। नोएडा, ग्रेटर नोएडा में 50 से अधिक बिल्डरों ने प्राधिकरण से अतिरिक्त फ्लैट बनाने के लिए एफएआर खरीदा। बिल्डरों के लिए पर्चेजेबल एफएआर के नियमों का पालन करने का प्रविधान किया गया। हालांकि सब सिर्फ ताक पर ही थे। टावरों के बीच की दूरी, हवा, पानी, सिसमिक जोन फोर का ध्यान, एविएशन डिपार्टमेंट की एनओसी समेत तमाम नियम शर्तें लागू होती हैं, पर इन नियमों की अनदेखी की गई। इतना ही नहीं बाद में पर्चेजेबल एफएआर के जरिये बिल्डरों को लाभ देने के लिए नियमों में बदलाव कर दिया गया। बिल्डरों को एक मुश्त राशि देने में राहत देते हुए छह-छह महीने की चार किस्त बना दी गईं। जिन बिल्डरों पर एफएआर की पांच करोड़ रुपये तक की धनराशि बनी, उनके लिए सिर्फ तीन माह का समय बढ़ाया गया। सुपरटेक व आम्रपाली समेत कई अन्य बिल्डरों की धनराशि पांच करोड़ से अधिक बनी थी।

हैरत की बात यह है कि जिन बिल्डरों पर पर्चेजेबल एफएआर की धनराशि पांच करोड़ से अधिक बनी, उन्होंने सिर्फ पहली किस्त की अदायगी की। उनमें से कुछ गिने-चुने बिल्डरों को छोड़कर बाकी ने शेष तीन किस्तों का भुगतान ही नहीं किया। बढ़े एफएआर के बाद पहले से बने टावरों में कई-कई मंजिल फ्लैट और बना दिए गए। जहां पहले 14 से 15 मंजिल फ्लैट बने थे, वहीं पर्चेजेबल एफएआर के बाद 25 से 30 मंजिल फ्लैट बन गए। बिल्डरों ने अतिरिक्त फ्लैटों को बेचकर अरबों की मोटी कमाई की। प्राधिकरण अधिकारियों ने कभी अपने पैसै की वसूली के लिए चिंता नहीं की। बिल्डरों को औपचारिकता के लिए नोटिस भेजकर इतिश्री कर ली गई, लेकिन प्रभावी कदम नहीं उठाए गए। इसका लाभ उठाते हुए बिल्डरों ने किस्तों की अदायगी आज तक नहीं की।

प्राधिकरण के पास नहीं है हिसाब

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हैरानी की बात यह है कि पर्चेजेबल एफएआर कितना कौन से बिल्डर को दिया गया है इसका कोई भी रिकार्ड प्राधिकरण के संबंधित विभाग के पास नहीं है। मांगे जाने पर केस टू केस पर्चेजेबल एफएआर की जानकारी उपलब्ध कराने की बात कह अधिकारी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। वहीं नोएडा प्राधिकरण सीईओ रितु माहेश्वरी का कहना है कि बिल्डरों पर पर्चेजेबल एफएआर की इतनी धनराशि नहीं है। धनराशि काफी कम है, पर वह यह नहीं बता सकीं कि सटीक धनराशि कितनी शेष है। उन्होंने कहा कि इसके बारे में सटीक जानकारी जुटाई जाएगी।

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