लखनऊ। वैसे तो एक ट्रेन के लोको पायलट के साथ कई जिंदगी जुड़ी रहती हैं। लेकिन जब मुझे वाराणसी से लखनऊ तक ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने का आदेश मिला तो लगा आज अपने कर्तव्य निर्वहन का सही समय आ गया। वाराणसी से निकले और रास्ते भर नजर सिग्नल पर थी, लेकिन आंखों में वो मंजर घूम रहा था, जहां लोग बिना ऑक्सीजन तड़पते हुए नजर आ रहे थे। एक बेचैनी थी जो लखनऊ आकर दूर हुई। सोमवार की सुबह बोकारो से चार लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन टैंकर लेकर एक और ऑक्सीजन एक्सप्रेस लखनऊ पहुंची। इस ट्रेन को वाराणसी से लोको पायलट संजय राम लेकर आये। लखनऊ आते ही संजय राम भावुक हो गए।
वाराणसी लॉबी के सुपरफास्ट मेल लोको पायलट संजय राम का चयन वर्ष 2005 में रेलवे भर्ती बोर्ड चंडीगढ़ से हुआ था। पिछले 16 साल में राजधानी एक्सप्रेस को भी संजय राम ने चलाया। पिछले कुछ महीने से वह बेगमपुरा जैसी सुपरफास्ट ट्रेन चला रहे हैं। संजय राम बताते हैं कि उनको रविवार को ऑक्सीजन एक्सप्रेस को वाराणसी से लखनऊ ले जाने का आदेश मिला। रात 12:30 बजे वाराणसी डीजल लॉबी में रिपोर्ट किया और कम्प्यूटर मैनेजमेंट सिस्टम (सीएमएस) में साइन ऑन किया। रात 12:55 बजे चार हजार हॉर्स पॉवर वाले डब्लूडीजी4डी श्रेणी के डीजल लोको इंजन नंबर 70644 से हम रात 1:02 बजे लखनऊ की ओर चल दिये।
ऑक्सीजन एक्सप्रेस में मेरे साथ सहायक लोको पायलट कन्हैया पांडेय और लोको इंस्पेक्टर शिव मणि राम भी थे। लोको इंस्पेक्टर शिवमणि राम ने वाराणसी से सुल्तानपुर और सुल्तानपुर से लखनऊ तक मुर्मुर ने ऑक्सीजन एक्सप्रेस को एस्कॉर्ट किया। संजय राम बताते है कि वैसे तो हर ट्रेन में लोको पायलटों के साथ सैकड़ो जिंदगी जुड़ी रहती है। लेकिन मुझे ये महसूस हुआ कि हजारों जिंदगी के लिए संजीवनी लाने का काम रेलवे ने इस राम को दिया। हम भी पूरी तरह मुस्तैद थे। हर आने वाले सिग्नल को देखकर स्पीड को बनाये रखकर आगे बढ़ते गए। इस रैक को अधिकतम 65 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से चलाया जा सकता था, रास्ते भर कही भी हमको नही रोका गया। यही कारण है कि रात 1:02 बजे वाराणसी से निकलने पर ऑक्सीजन एक्सप्रेस रात 3:33 बजे सुलतानपुर से गुजरते हुए सुबह 6:43 बजे लखनऊ आ गई।