नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में भारी-भरकम दस्तावेज पेश करने पर नाराजगी जताई और कहा कि इसका मकसद जजों को आतंकित करना है। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के आदेश पर बांबे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि इस मामले में 51 खंडों में दस्तावेज पेश किए गए हैं। इसका क्या मकसद है? हम इन्हें नहीं पढ़ सकते।
वहीं, विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्त पद नहीं भरे जाने को खेदजनक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से बताने को कहा है कि इस सिलसिले में उसने क्या कदम उठाया है? अदालत ने इसके लिए केंद्र सरकार को 10 दिनों का समय दिया है। इसके साथ ही न्यायालय ने आशंका जाहिर की है कि इसके पीछे संभवत: कुछ लाबी काम कर रही है।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि हम इस मामले में स्पष्ट रख जानना चाहते हैं कि न्यायाधिकरणों को जारी रखा जाएगा या उन्हें बंद कर दिया जाएगा। ऐसा लगता है कि नौकरशाही इन न्यायाधिकरणों को नहीं चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऋण वसूली न्यायाधिकरण से लेकर राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण तक कुल 15 अर्ध न्यायिक निकायों में पीठासीन अधिकारी के 19 पद रिक्त हैं। इसके अलावा न्यायिक सदस्यों के 110 और तकनीकी सदस्यों के 111 पद रिक्त हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इन न्यायाधिकरणों में लोगों की नियुक्ति नहीं करने को लेकर वह वरिष्ठ अधिकारियों को तलब कर उनसे इसका कारण पूछ सकती है। पीठ ने कहा, हमें उम्मीद है कि एक सप्ताह में आप इस पर ध्यान देंगे और हमें इससे अवगत कराएंगे। अन्यथा हम इसको लेकर बहुत गंभीर हैं। हम वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर इसका कारण पूछ सकते हैं। कृपया ऐसी स्थिति न आने दें।