पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कांग्रेस से बगावत कर दी है। पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के एक होटल में ठहरे हुए हैं। भाजपा में जाने की खबरों पर खुद पायलट कह चुके हैं कि वह भाजपा में नहीं जाएंगे। इसके बाद सियासी गलियारों में चर्चा है कि पायलट नई पार्टी भी बना सकते हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगर सचिन पायलट अलग पार्टी बनाते हैं तो क्या उनकी पार्टी मतदाताओं के मन में पैठ बनाकर कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बन पाएगी।
राजस्थान के इतिहास में पार्टियों के अस्तित्त्व को लेकर एक नजर डाली जाए तो आजादी के बाद से लेकर आज तक राजस्थान में छोटी और क्षेत्रिय पार्टियां अपनी जगह नहीं बना पाई हैं। पिछले चार दशक से प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर रहती है। इन दोनों पार्टियों का विकल्प अभी तक कोई नई पार्टी नहीं बन पाई है।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो यहां क्षेत्रीय और छोटी पार्टियों का कोई भविष्य नहीं है। एक-दो चुनाव के बाद वे राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो जाती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान में 86 पार्टियों ने भाग्य आजमाया था। इनमें से 6 राष्ट्रीय और 7 राज्यस्तरीय पार्टियां भी थीं। इनमें से 7 को ही जीत मिली थी।
7 साल में भाजपा के तीन नेताओं ने बनाई अलग पार्टियां, अब कांग्रेस की बारी
राजस्थान में पार्टियों से बगावत कर अलग पार्टियां बनाने की बात की जाए तो पिछले 7 सालों में भाजपा से बगावत कर तीन नेताओं ने अलग-अलग पार्टियां बनाईं। इनमें राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा, लोकसभा सांसद हनुमान बेनिवाल और पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी शामिल हैं।
किरोड़ी लाल मीणा: वर्ष 2013 में भाजपा नेता किरोड़ी लाल मीणा ने अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा था। किरोड़ी लाल की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने 134 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 4 सीटों पर जीत मिली। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले वापस भाजपा में शामिल हो गए।
हनुमान बेनिवाल: बेनीवाल ने 2018 विधानसभा चुनाव में आरएलपी के नाम से नई पार्टी बनाकर प्रदेश की अपने प्रभाव वाली 58 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें मात्र 3 सीटों पर जीत दर्ज की। जिसके बाद लोकसभा चुनाव 2019 में एनडीए के साथ गंठबंधन कर लिया।
घनश्याम तिवाड़ी: 2018 के विधानसभा चुनाव में तिवाड़ी ने भाजपा से नाता तोड़कर अपनी भारत वाहिनी पार्टी बनाई। 63 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। जिसके बाद घनश्याम तिवाड़ी लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान कांग्रेस में शमिल हो गए।