आगरा। पुलिस, प्रोफेसर फिर राजनीति। सपा, बसपा और फिर भाजपा। जिंदगी के हर अंग में अलग रंग भरने में सफल रहे प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल भाजपा के अनुमानों पर हर बार खरे उतरे हैं। वे हर प्रयोग में फिट रहे हैं। भाजपा ने उन्हें विधायक रहते लोकसभा चुनाव लड़ाया। फिर केंद्रीय मंत्री रहते विधानसभा चुनाव में अखिलेश के सामने उतारा।
जीत-हार से परे एसपी सिंह बघेल हर बार जुझारू प्रत्याशी और कर्मठ कार्यकर्ता साबित हुए। बेदाग छवि और संघ पदाधिकारियों से अच्छे संपर्क ने इस बार भी उनकी टिकट पक्की कर दी। आगरा सुरक्षित सीट से वे दूसरी बार भाजपा प्रत्याशी बने हैं। उन्हें क्षेत्र और सदन में सक्रियता का भी फायदा मिला है।
सब इंस्पेक्टर से नेता तक का रहा सफर
इटावा के उमरी गांव में जन्मे प्रो. एसपी सिंह बघेल पहले पुलिस में सब इंस्पेक्टर रहे। नौकरी के इस्तीफा देने के बाद आगरा कॉलेज में सैन्य विज्ञान में प्रोफेसर रहे। सपा से वे 1998 से 2004 तक जलेसर से सांसद रहे। एसपी सिंह बघेल मुलायम सिंह यादव के करीबी थे। हालांकि सपा को अलविदा कह के वह बसपा में आ गए। बसपा से राज्यसभा सदस्य रहे। सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए।
बीजेपी ने बनाया अहम चेहरा
भारतीय जनता पार्टी ने 3 जुलाई 2015 को प्रो. एसपी सिंह बघेल भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। 2017 में पार्टी ने उन्हें टूंडला विधानसभा क्षेत्र से टिकट दी, जीत दर्ज करने के बाद पशुपालन, लघु सिंचाई एवं मत्स्य पालन मंत्री बनाए गए।
इसके बाद पार्टी ने कई प्रयोग किए, टूंडला के विधायक और मंत्री होने के बाद उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में आगरा सुरक्षित सीट से लड़ाया। इस सीट पर दो बार से भाजपा के डा. राम शंकर कठेरिया सांसद थे। उन्हें इटावा से चुनाव लड़ाया गया। दोनों सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की। उन्हें केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री बनाया गया।
2022 में अखिलेश को दी थी कड़ी टक्कर
2022 के विधानसभा चुनाव में प्रो. एसपी सिंह बघेल सपा के गढ़ करहल से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने चुनाव लड़ाया, उन्होंने कड़ी चुनौती दी। अखिलेश यादव को करहल में चुनाव प्रचार में उतरने को मजबूर कर दिया। करहल से चुनाव हारने के बाद उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री बनाया गया। अंगदान के लिए देशभर में आंदोलन शुरू किया।
दोबारा बीजेपी ने बनाया प्रत्याशी
प्रो. एसपी सिंह बघेल सदन में सक्रियता के साथ ही अपने क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। बेदाग छवि के साथ ही लोगों के बीच में रहकर समस्याएं सुनीं। भले ही संघ की पृष्ठभूमि नहीं रही, लेकिन संघ पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच में उनकी स्वीकारोक्ति से दोबारा भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़ने का रास्ता साफ कर दिया।