नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से हाल ही में कहा गया है कि मौत की सजा का सामना कर रहे दोषी याचिकाओं में देरी होने की वजह से फायदा उठा रहे हैं। SC की ओर से राज्य सरकार और अधिकारियों को दया याचिकाओं पर जल्द फैसला लेने के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि याचिकाओं पर जल्द फैसला आने से दोषी को भी इस बात का पता रहेगा कि उनके साथ क्या आगे क्या होगा और पीड़ितों को भी इससे न्याय मिलेगा। मामलों में दोषी भी इसका फायदा नहीं उठा सकेंगे।
महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के खिलाफ SC में दी चुनौती
दरअसल महाराष्ट्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी गई थी। इसमें दो बहनों की मौत की सजा को उम्रकैद को लेकर याचिका दाखिल की गई थी। इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला लेने की बात कही है। इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हाईकोर्ट को दोषियों का अपराध देखते हुए इन्हें आजीवन कारावास की उम्रकैद सुना देनी चाहिए थी। जिसके बाद कोर्ट में इन दोनों बहनों को अंतिम सांस तक उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
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पूरा मामला भी जानिए…
साल 1990 से 1996 के बीच कोल्हापुर जिले में 13 बच्चों का अपहरण किया गया। इनमें से 9 बच्चों की हत्या कर दी गई थी। इस पूरी घटना के पीछे की मास्टरमाइंड दो बहनें सीमा मोहन गावित और रेणुका किरण शिंदे थीं। 1996 में कोल्हापुर पुलिस इन्हें इस पूरे मामले में गिरफ्तार करती है। फिर 2001 में सेशन कोर्ट के द्वारा इन्हें फांसी की सजा सुनाई जाती है। साल 2001 में कोल्हापुर की एक अदालत की ओर से इन दोनों को दी गई मौत की सजा को 2004 में हाईकोर्ट में बरकरार रखा जाता है, जबकि 2006 में उनकी अपील को SC में खारिज कर दिया गया।
राष्ट्रपति ने खारिज की दया याचिकाएं
इसके बाद 2013 में इन दोनों की दया याचिकाओं को राज्यपाल ने खारिज किया, फिर इसके बाद 2014 में राष्ट्रपति के पास लगाई गई दया याचिका भी खारिज हो गई। राष्ट्रपति के द्वारा याचिका खारिज होने के बाद इन दोनों बहनों ने फिर बॉम्बे हाईकोर्ट से उनकी सजा को उम्र कैद में बदलने की मांग की, साथ ही कहा कि उनकी दया याचिका पर फैसला लेने में काफी देरी की गई है। यहां तक की उन्हें इसे मानसिक यातना का भी सामना करना पड़ा है।