नई दिल्ली। साकेत कोर्ट ने सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले में दिल्ली पुलिस कमिश्नर को अवमानना नोटिस जारी किया है। अदालत ने मामले में एक आरोपित की जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान कहा कि पीड़िता द्वारा संगम विहार सब डिवीजन के एसीपी के समक्ष शिकायत करने के लगभग 36 दिन बाद थाने में एफआईआर दर्ज की गई। मामले में कोर्ट ने कमिश्नर के साथ दक्षिणी जिले की पुलिस उपायुक्त को फटकार लगाई है।
28 मार्च से शिकायत दर्ज कराने की कोशिश
जारी नोटिस के अनुसार, पीड़िता मामले में शिकायत दर्ज कराने के लिए 28 मार्च से ही कोशिश कर रही थीं लेकिन उनकी शिकायत दर्ज चार मई को हुई। कोर्ट ने कहा कि महिला के साथ कथित रूप से दो लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। उसने 28 मार्च को संगम विहार के एसीपी उपखंड में शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन एफआइआर तुरंत दर्ज नहीं की गई जो कि कानून का घोर उल्लंघन है।
दिल्ली महिला आयोग से मांगी मदद
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने कहा कि महिला की सुनवाई नहीं हुई तो उसने दिल्ली महिला आयोग और अन्य संगठनों के साथ संपर्क किया। महिला ने कहा कि उसे कई बार पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने पड़े, थाना प्रभारी और अन्य अधिकारियों से मिलना पड़ा।
36 दिनों बाद दर्ज हुई एफआइआर
थाने में जाकर कई-कई घंटे बैठने पड़े, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। एफआइआर आखिरकार शिकायत के 36 दिनों बाद 4 मई को दर्ज की गई। कोर्ट ने इस पर 31 अगस्त को कहा कि पीड़िता के साथ पुलिसवालों का रवैया ऐसा था जैसे कि आरोपित वही हो और वह भी तब जब मामला सामूहिक दुष्कर्म का हो। आठ अगस्त को अदालत ने संबंधित पुलिस उपायुकत को निष्पक्ष जांच करने का निर्देश दिया। पुलिस उपायुक्त ने एक रिपोर्ट दायर की, जिसमें दावा किया गया कि महिला का पता नहीं लगाए जा सकने की वजह से प्राथमिकी दर्ज करने में हुई देरी की जिम्मेदारी जांच अधिकारी की नहीं है।
पुलिस की रिपोर्ट पर कोर्ट नाराज
17 अगस्त को कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट कुछ और नहीं, बल्कि आंखों में धूल झोंकने के समान है क्योंकि महिला अदालत को पहले ही बता चुकी है कि उसे आठ अगस्त के बाद न तो तो पुलिस उपायुक्त और न ही किसी अन्य पुलिस अधिकारी का काल आया है। इसके बाद कोर्ट ने पुलिस आयुक्त को जांच करने का निर्देश दिया। 29 अगस्त को महिला ने कोर्ट को बताया कि उसे पुलिस उपायुक्त के आफिस बुलाया गया था लेकिन जब उसने अपने साथ हुए प्रताड़ना के बारे में बात करने की कोशिश की तो उसे बताया गया कि उसे आगे जांच के लिए बुलाया गया, लेकिन जांच हुई नहीं।
पुलिस को लगी फटकार
कोर्ट ने कहा कि दक्षिणी जिले की पुलिस उपायुक्त और पुलिस कमिश्नर सहित संबंधित पुलिस अधिकारियों का इरादा, जैसा कि घटनाओं के उपरोक्त विवरण से अनुमान लगाया जा सकता है, अदालत द्वारा जारी विभिन्न आदेशों को दरकिनार करना या उनका उल्लंघन करने का है। यह अदालत का कर्तव्य है कि वह अपने आदेशों को लागू करवाए, अन्यथा, अदालत द्वारा जारी आदेश मजाक और कागजी आदेश बनकर रह जाते हैं। अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि मामले में घटनाओं का वर्णन और क्रम दिल्ली पुलिस के कामकाज की खराब और दयनीय स्थिति को दर्शाता है। पूरा विषय सुधारात्मक कार्रवाई के लिए गृह सचिव, केंद्रीय गृह मंत्रालय के संज्ञान में लाये जाने की जरूरत है।