आगरा। सुदूर देशों से ताजनगरी में प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। हिमालयी क्षेत्रों से बारिश के बाद मैदानी क्षेत्रों का रुख करने वाले वेगटेल की चंचलता और मदमस्त उड़ान के साथ अठखेलियां लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। वेगटेल को मोटासिलिडी परिवार के मोटासिला वर्ग में वर्गीकृत किया गया है। हिंदी में इसे खंजन नाम से जाना जाता है। वेगटेल का आकार 8-9 इंच एवं शरीर लम्बा होता है। छिछले पानी वाले स्थान पर अपनी पूंछ को हिलाते हुए और मदमस्त उड़ान से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। आगरा व आसपास के क्षेत्रों में इस बार भी अन्य वर्षों की तरह वेगटेल का आगमन हो गया है। वेगटेल पर अध्ययन कर रहे बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष डा. केपी सिंह ने बताया कि भारत के हिमालयी क्षेत्रों से वेगटेल का बारिश के मौसम के समाप्त होते ही आगरा आना शुरू हो जाता है। सर्दियों तक यह मैदानी इलाकों में रहता है। मई की गर्मी शुरू होते ही वापस ठंडे पर्वतीय क्षेत्रों में चला जाता है। डा. केपी सिंह ने बताया कि ताजनगरी में ग्वालियर रोड पर सेवला क्षेत्र के वेटलैंड पर वेगटेल की पांच प्रजातियां मौजूद हैं। आगरा में चबंल व यमुना के नजदीकी क्षेत्रों, कीठम झील, ताज नेचर वाॅक, ग्वालियर रोड के वेटलैंड, जोधपुर झाल के अलावा अन्य जगहों पर तालाबों, नहरों के आस-पास बहुत बड़ी संख्या में वेगटेल मौजूद हैं। भारत में वेगटेल की छह मुख्य प्रजातियां मौजूद हैं जिनमें व्हाइट वेगटेल, व्हाइट ब्राउडेड वेगटेल, वेस्टर्न यलो वेगटेल, सिट्रिन वेगटेल, ग्रे वेगटेल व फारेस्ट वेगटेल हैं। आगरा में व्हाइट वेगटेल, व्हाइट ब्राउड वेगटेल, वेस्टर्न यलो वेगटेल, सिट्रिन वेगटेल व ग्रे वेगटेल को देखा जा रहा है। यहां से आता है वेगटेलभारत में वेगटेल केवल हिमालय के प्रजनन क्षेत्र से ही नहीं बल्कि साइबेरिया, रूस, मंगोलिया व कैस्पियन क्षेत्रों से भी प्रवास पर आता है। यलो वेगटेल व इसकी उप-प्रजातियां कश्मीर, लद्दाख व साइबेरिया में प्रजनन करती हैं। वहीं, सिट्रिन वेगटेल हिमालय क्षेत्र के अलावा पाकिस्तान व अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र में भी प्रजनन करती हैं। वेगटेल का मई से अगस्त तक का समय प्रजनन काल का होता है। मादा 5-7 अंडे एक बार में देती है। छोटे कीड़े, पानी के किनारे के कीड़े व कुछ उड़ने वाले कीट-पतंगे इनका मुख्य भोजन होता है।