ग्रेटर नोएडा। 22 साल से औद्योगिक भूखंड को अपने नाम कराने के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के चक्कर लगा रहे दिल्ली निवासी महेश मित्र इस कदर व्यवस्था से तंग आ गए हैं कि उन्हें राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की गुहार लगानी पड़ गई। इसके बाद भी उनकी सुनवाई तक नहीं होती।
उनका कहना है कि प्राधिकरण कार्यालय में उन्हें अधिकारियों के कमरे तक नहीं जाने दिया जाता। नए सीईओ तक से मिलने नहीं दिया जा रहा है। राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम व जिला उपभोक्ता फोरम से केस जीतने के बाद भी प्राधिकरण के अधिकारी उन्हें प्लाट आवंटित नहीं कर रहे हैं।
महेश मित्र ने बताया कि वह दिल्ली के शास्त्री नगर निवासी हैं। वर्ष 2000 में प्रगति मैदान में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा पहले आओ पहले पाओ योजना के तहत भूखंड योजना को लाया गया था। उन्होंने 500-1000 वर्गमीटर के लिए आवेदन किया था। 20 हजार रुपये भी जमा किए थे, लेकिन उसके बाद साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया।
ताज्जुब की बात यह है कि 2001 में प्राधिकरण ने 25 एकड़ जमीन लेने का पत्र भेज दिया। 2003 में 2500 वर्गमीटर की जमीन पर सहमति बनी, लेकिन उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2005 में जिला उपभोक्ता फोरम में अर्जी दी। 2006 में फैसला पीड़ित पक्ष में आया। इस पर प्राधिकरण प्रदेश उपभोक्ता फोरम में चला गया। यहां फोरम ने प्राधिकरण के पक्ष में फैसला दिया। पीड़ित ने 2011 में राष्ट्रीय उपभोक्ता कमिशन में शिकायत की।
2014 में राष्ट्रीय फोरम ने पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाया साथ ही कहा कि उसी शर्त में भूखंड दिया जाए जो योजना के समय थी। तब से अब तक प्राधिकरण की ओर से आदेश पर संज्ञान नहीं लिया गया। महेश मित्र ने बताया कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखकर शिकायत दी जा चुकी है। प्राधिकरण कार्यालय में जाते हैं तो कर्मचारी अधिकारियों से मिलने तक नहीं देते।