गौतम बुध नगर: नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा के निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य की दृष्टि से तो हालात बदतर एवं चिन्तनीय है ही, लेकिन ये लूटपाट एवं धन उगाने के ऐसे अड्डे बन गये हैं जो अधिक परेशानी का सबब है। क्षेत्रीय आम जनमानस द्वारा निजी अस्पतालों में मरीजों की लूट-खसोट, इलाज में कोताही और मनमानापन रवैया लगातार सामने आ रहा है जिसे मिशन क्राइम फ्री इंडिया संगठन एवं क्षेत्रीय लोग बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। विशेषतः ग्रेटर नोएडा की यथार्थ एवं अन्य नामी निजी अस्पतालों की श्रृंखला में इलाज एवं जांच परीक्षण के नाम पर जिस तरह से लाखों रूपये वसूले जा रहे हैं, वह तो इलाज के नाम पर जीवन की बजाय जान लेने के माध्यम बने हुए हैं। इसका ताजा उदाहरण है यथार्थ अस्पताल मैं डाढा की एक महिला के साथ इलाज में लापरवाही का मामला सामने आया है जिससे इलाज के दौरान करीब तीन लाख पचास हजार रुपए का बिल। इतनी बढ़ी राशि लेकर भी डाढा की उस महिला की तबीयत सही नहीं है। ऐसे महंगे इलाज की फिर क्या उपयोगिता? क्यों इस तरह की सरेआम लूटपाट इलाज के नाम पर हो रही है? लगता है कानून एवं प्रशासन नाम की चीज नहीं है, या उनकी मिलीभगत से जीवन के नाम पर मौत का व्यापार खुलेआम हो रहा है तथा
इस महिला की दयनीय स्थिति का निजी अस्पतालों पर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण चिकित्सा व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग है। इलाज के नाम पर आम आदमी जाये तो कहां जाये? सरकारी अस्पतालों में मौत से जूझ रहे रोगी के लिये कोई जगह नहीं है तो उसके लिये निजी अस्पतालों में शरण जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं? निजी अस्पतालों ने लूट-खसोट मचा रखी है। यहां तक कि इलाज के बगैर भी बिल वसूलने की घटनाएं नजर आती है। मरीजों पर महंगा टेस्ट करवाने के लिए दबाव डाला जाता है। बगैर जरूरत मरीज को वेंटिलेशन व ऑपरेशन थियेटर में डाल दिया जाता है। मरीजों को उनके मामले का विवरण नहीं दिया जाता है। तय पैकेज पर एक्सट्रा पैकेज लेने के मामले भी सामने आये हैंै। इससे बड़ा अनैतिक काम और नहीं हो सकता है। नर्सिंग होम एवं निजी अस्पताल वालों को यह ध्यान में रखना होगा कि चिकित्सा-सेवा उनके लिये ईंट व लकड़ी का व्यवसाय नहीं, बल्कि जिंदगी बचाने का काम है। सेवा को कभी बेचा नहीं जाता। मरीजों को मानवीय दृष्टि से देखना चाहिए। अस्पताल कल-कारखाना नहीं, यह सेवा-मूलक उपक्रम है। देखना यह है कि सरकार इस पर कोई कठोर कदम उठाती है या नहीं ? यथार्थ में एक तरफ मरीज के परिवार से अतिशयोक्तिपूर्ण एवं आश्चर्य में डाल देने वाला बिल क्षेत्रीय लोगों से वसूला जा रहा है इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं रोज-ब-रोज निजी अस्पतालों में दोहराई जाती हैं। यह वाकया निजी अस्पतालों की बदनियति की मिसाल है। लेकिन सरकार, प्रशासन, प्रभावशाली लोगों के संरक्षण की वजह से किसी का कुछ नहीं बिगड़ता। यहां तक कि अपने को स्वतंत्र कहने वाला मीडिया भी निजी अस्पतालों की अनियमितताओं और कमियों को दिखाने-बताने से परहेज ही करता है। निजी अस्पतालों में मरीजों के इलाज में लापरवाही व मनमानी ही नहीं की जाती, बल्कि मरीजों से अधिक बिल वसूलने के लिये हिंसक एवं अराजकता अपनाई जाती है। यहां तक कि पैसे नहीं दिये जाने पर अस्पताल प्रबंधन परिजनों को शव तक ले जाने नहीं देता है, अधिकांश मामलों में मरीज किसी दूसरे या सरकारी अस्तपाल में जाना चाहे तो भी अनेक बाधाएं खड़ी कर दी जाती है। मुझे अस्पतालों द्वारा बाउंसर बुलाकर एवं पुलिस प्रशासन का डर दिखाकर लोगों को डराया जा रहा है जिससे कि वह अपनी आवाज को ना उठा सके लेकिन मरीज के परिजनों के सामने इधर कुआं उधर खायी की स्थिति बन जाती है। आम आदमी करे भी तो क्या करें। स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्धता कराना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन आजादी के सात दशक में पहुंचते-पहुंचते सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने लगी है और इसका फायदा निजी अस्पतालों एवं निजी स्कूलों के द्वारा उठाया जा रहा है। अधिकांश निजी अस्पतालों का स्वामित्व राजनीतिकों, पूंजीपतियों और अन्य ताकतवर लोगों के पास होने से उनके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत किसी सामान्य व्यक्ति की कैसे हो सकती है? यथार्थ अस्पताल के ताजा मामले में स्वास्थ्य विभाग उत्तर प्रदेश सरकार को संज्ञान लेना चाहिए नहीं तो इसके खिलाफ मिशन क्राइम फ्री इंडिया संगठन एक बड़ा आंदोलन अस्पतालों के रवैया के खिलाफ करने की निजी अस्पतालों को चेतावनी देता है
चिकित्सीय संस्थाओं द्वारा की जाने वाली गड़बड़ियों से न केवल मरीज की …